सन्नाटा


चीर कर सन्नाटा

श्मशान का

सवाल उठाया मैंने ,

होते हो आबाद

हर रोज

कितनी जानो से यहाँ

फिर क्यों इतनी ख़ामोशी

बिखरी है

क्यों सन्नाटा छाया है यहाँ ,

हर एक लाश के आने पर

तुम जश्न मनाओ

आबाद हो रहा तुम्हारा जहां

यह अहसास कराओ .

टिप्पणियाँ

ज्योति जी
नमस्कार
सच में "सन्नाटा" रचना में एक अलहदा सोच दिखाई दी है.
आपने तो श्मशान से भी एक प्रश्न उठा कर पाठकों के बीच खडा कर दिया है.
दिल को छो जाने वाली पंक्ति :-
हर रोज
कितनी जानो से यहाँ
फिर क्यों इतनी ख़ामोशी
बिखरी है

- विजय तिवारी " किसलय "
Rakesh Kumar ने कहा…
बाप रे बाप ! ज्योति जी 'चीर कर सन्नाटा' आप श्मशान भी पहुँच गयीं.सच में बड़ी हिम्मत है आपमें.
आपने श्मशान से प्रश्न पूछ अपनी 'ज्योत'अब श्मशान में में भी बिखेर दी है.
कहतें हैं 'शिव' का वास होता है श्मशान में.
सन्नाटा कान में चीत्कार करता है।
आक्रोश का यह चेहरा ही वक़्त की मांग है ....
हर एक लाश के आने पर

तुम जश्न मनाओ

आबाद हो रहा तुम्हारा जहां

यह अहसास कराओ

बहुत तेज़ शोर है सन्नाटे का ..
Suman ने कहा…
achhi lagi rachna .....
मनोज भारती ने कहा…
श्मशान में बिखरे सन्नाटे को तोड़ने की हिम्मत...लाशों का शौर और जश्न ...जीवन के बाह्य आवरण में तो बहुत शौर है...आपने तो इसके बाद के शौर से बहुत कुछ कहने की कोशिश की है। सन्नाटे सहने की हममें हिम्मत नहीं होती। शौर जीवन का अभिन्न अंग लगता है।
बेनामी ने कहा…
बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।
vandana gupta ने कहा…
वाह्………क्या खूब सोच है …………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .
राज भाटिय़ा ने कहा…
हर एक लाश के आने पर
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ .
बहुत गहरी चोट छिपी हे आप की इस कविता मे, धन्यवाद
बेनामी ने कहा…
that's really amazing
apaki soch kahan se kahan pahunch gayi, isi ko kahate hain kavi man. bag bageechon se man bhar gaya to shmashan pahunch gaye aur usako bhi suna dali.
हरकीरत ' हीर' ने कहा…
क्या पता मनाती ही हों ...
सारी आत्माएं मिलकर .....:))
हर एक लाश के आने पर
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ .

Gahan Abhivykti...
हर एक लाश के आने पर
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ
बहुत तेज़ शोर है सन्नाटे का ..

बहुत अच्छा लिखा है...
हर एक लाश के आने पर
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ

कभी सन्नाटा भी चुभता है. गज़ब एहसास भरें है ज्योति जी आपने इस कविता में. अंदर तक हिला दिया. बहुत सुंदर.
jyoti ji
bhai aapne to gazab ka prashn uthaya hai lekin bilkul sateek rachna
jahan har roz jane kitne hi dafna diye jaate hain .par fir bhi sannta vahan bikhra pada hai .
lekin vah bahuto ki aviral aansuo se nam bhi to hota hoga fir kitni der jashhn manayega . srishhti ke niymo se to har koi bandha hota hai .fir kapalik kitni der jashn manayega.vo to kurati hi iska aadi ho chuka rahta hai .
atah unke liye ye koi naya kary nahi haota .ham sabhi apne apne kartavyo se bandhe hue hain
aur chahe jaise bhi use pura karna hi padta hai .
aapki prastuti waqai is bar alag si parantu yatharthta liye hue hai
bahut hi sarthak post
badhai
poonam
Vivek Jain ने कहा…
हर रोज
कितनी जानो से यहाँ
फिर क्यों इतनी ख़ामोशी
बिखरी है

सुंदर- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Smart Indian ने कहा…
शाश्वत प्रश्न है
BrijmohanShrivastava ने कहा…
बहुत गहराई लिये हुये है यह कविता
Sunil Kumar ने कहा…
ज्योति जी एक शेर याद आ रहा है अर्ज किया है हे शम्शान भूमि तेरा सन्नाटा हमसे देखा नहीं जाता , हम अपनी जान दे देकर तुझे आबाद करते है | आपकी रचना बहुत गहन अर्थ लिए हुए है, बधाई
Rachana ने कहा…
kya baat hai kitni gahri soch
हर रोज
कितनी जानो से यहाँ
फिर क्यों इतनी ख़ामोशी
बिखरी है
khoob likha hai
rachana
आबाद हो रहा है तुम्हारा जहां
अहसास कराओ..

बहुत सुंदर पंक्तियां।
ZEAL ने कहा…
bahut sundar rachna , man ko udwelit karti huyi.
ashish ने कहा…
क्या लिखूं , केवल महसूस किया जा सकता है . मन भारी हो जाता है . आभार .
Kunwar Kusumesh ने कहा…
पेचीदा प्रश्न है जी.

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