सब का मालिक एक है
ईश्वर हो या अल्लाह
वो कहता बस यही ,
हमे न चाहिए कोई जमीं
और न इमारत बड़ी -बड़ी ।
मैं तो हूँ कण -कण में
जीवन के हर धड़कन में ,
याद करोगे जिस जगह
मिलूंगा तुम्हे मैं वही ।
नाम हमे चाहे जो दे दो
इबादत तो है एक ही ,
बाँट रहे हो क्यों हमको
हम तो है सबके ही ।
मैं तो नेक इरादों में
मानवता की राहो में ,
प्रेम के निर्मल भावो में
इंसानियत से बढ़कर
नही होता धर्म कोई ।
धर्म सभी होते है सच्चे
अहसास सभी होते एक से ,
वही इनायत बरसेगी
फर्क जहां न होगा कोई ।
हमने तो नही सिखाया
तुम्हे करना भेद कभी ,
न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम
है केवल यहाँ इंसान सभी ।
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इस रचना को फैसले के पहले ही डालना था ,इसे मैं भोपाल में लिखी रही जब वहां गयी थी ,उस समय गणेश चतुर्थी रही मगर लौटने के बाद सोचते -सोचते समय निकल गया फिर संकोच में नही डाल सकी ,मगर कल अपने मित्र के यहाँ जाकर जब इसे पढायी तो उसने कहा तुरंत डाल दो ,और आज डाल पायी ।
टिप्पणियाँ
bahut sarthak rachana hai.......
मानवता की राहो में ,
प्रेम के निर्मल भावो में
इंसानियत से बढ़कर
नही होता धर्म कोई ।
kitnee badiya bhav hai.........
Aabhar
http://veeranchalgatha.blogspot.com/
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना....
दोनों ही याद आ गए आपकी रचना पढ़ कर!
आभार!
आशीष
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प्रायश्चित
ये हर सच्चे हिन्दुस्तानी के दिल की आवाज़ है हम अम्न चाहते हैं ,भाईचारे में विश्वास रखते हैं ,सभी धर्मों का आधार मानवता ही है ,बस उसे ही अपना लें
तो धर्म का सच्चा पालन होगा
ज्योति जी बधाई हो ,इस र्साथक कविता के लिये
इंसानियत से बढ़कर
नही होता धर्म कोई ।
हर कोई यह एक बात ध्यान में रखे तो इतनी अशांति ही क्यों हो!
बहुत अच्छी रचना है .
धर्म सभी होते हैं सच्चे..अहसास सभी के होते एक से...
बहुत सही और सच्ची बात कही आपने...
हर मज़हब इंसानियत का पैग़ाम देता है...
पवित्र और अम्नो-अमान के भाव से रचित रचना के लिए बधाई.
डा.अजीत