कोसना भी तो कर्म ही है.पिछले कर्म यानि प्रारब्ध. वैसे बहुत पहले कबीर दास जी को भी ऐसा ही लगा होगा .इसलिए उन्होंने लिखा "रहना नहीं देश बिराना है यह संसार कागद की पुडिया बूंद लगे घुल जाना है यह संसार झांड और झाँखर उलझ पुलझ मर जाना है "
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है कल (24-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
मनुष्य जीवन आखिर अभिशप्त क्यों हो रहा ? कही हमारे कोसने का दुष्परिणाम तो नही या कर्मो का फल ? जी हाँ! निसंदेह सुख या दुःख सभी हमारे किये गए कर्मों का फल ही है जिसे हम समझ नहीं पाते. बहुत अच्छा सन्देश देती हुई सार्थक प्रस्तुति. हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
मनुष्य जीवन आखिर अभिशप्त क्यों हो रहा ? कही हमारे कोसने का दुष्परिणाम तो नही या कर्मो का फल ? जी हाँ! निसंदेह सुख या दुःख सभी हमारे किये गए कर्मों का फल ही है जिसे हम समझ नहीं पाते. बहुत अच्छा सन्देश देती हुई सार्थक प्रस्तुति. हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
मनुष्य जीवन आखिर अभिशप्त क्यों हो रहा ? कही हमारे कोसने का दुष्परिणाम तो नही या कर्मो का फल ? जी हाँ! निसंदेह सुख या दुःख सभी हमारे किये गए कर्मों का फल ही है जिसे हम समझ नहीं पाते. बहुत अच्छा सन्देश देती हुई सार्थक प्रस्तुति. हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
जीवन की अवधि चींटी की भांति और दुदर्शा हाथी की भांति। मिलना बिछडना ,जीवन मृत्यु यह तो अटल सत्य है। दुष्परिणाम भी होसकता और कर्म का फल भी हो सकता है। वैसे रचना के अनुरुप चित्र सही लगाया है हम सब शतरंज के मोहरे है इनको चलने बाला और हमे चलाने वाला कौन है यही पता नहीं ।कहीं सरकार तो नहीं ?
मनुष्य जीवन को कभी वरदान माना जाता था। कहते हैं, मनुष्य बनने के लिए देवता भी तरसते हैं। किंतु वर्तमान जीवनशैली के अंतर्द्वंद्व से उपजी आपकी कविता एक प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
ज्योति जी कृपया एक बार इस ब्लाग को देखें । यहाँ पता नहीं किसने ?? आपके बारे में कुछ लिखा है । सारी ब्लाग पता लिखना भूल गया था । http://yeblogachchhalaga.blogspot.com/
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मनुष्य के जीवन चरित्र का वर्णन बहुत ही खुबशुरत ढंग से पेश किये हैं| ---------------------------- यहाँ भी आयें| आपकी टिपण्णी से मुझे साहश और उत्साह मिलता है| कृपया अपनी टिपण्णी जरुर दें| यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ... www.akashsingh307.blogspot.com
अभिशप्त क्यों हो रहा ? bahut gambheer bhavabhivyakti. jyoti ji , aapke blog ka parichay rajeev ji ne ''ye blog achchha laga ''par diya hai.[http://yeblogachchhalaga.blogspot.com] par aakar apne vicharon se kritarth karen.
जीवन की अवधि और दुर्दशा /चींटी की भांति होती जा रही है /कब मसल जाये /कुचल जाये बहुत सुन्दर प्रस्तुति उम्दा भाव ज्योति जी ज्योति प्रकाशित करती रहें शुभ कामनाएं -हम भी आप से सुझाव व् समर्थन की आशा में सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
such men kaha aapne jeevan ke safar men kab kya ho jaye kuchh pata nahin. Lekin isse dar kar ghar men to nahin baitha ja sakta. Jeevan aage badhne ka naam hai isliye hamesha pure aatm-vishvas ke saath zindgi ki dagar par chlna chahiye.
32 टिप्पणियां:
भयभीत हूँ
सहमी हूँ
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
Gahan abhivykti..... Sanvedansheel prashn...
सच्ची बात!
तेरी है न मेरी है दुनिया है ये फ़ानी
हम तो हैं उस जहाँ के जहाँ "तेरा" धाम है।
जीवन की आपाधापी नित नए अनुभव और उनसे जूझने की कला. डार्विन ने कहा था जो श्रेष्ठ है वाही शेष रहेगा.
सुंदर अभिव्यक्ति.
कोसना भी तो कर्म ही है.पिछले कर्म यानि प्रारब्ध.
वैसे बहुत पहले कबीर दास जी को भी ऐसा ही लगा होगा .इसलिए उन्होंने लिखा
"रहना नहीं देश बिराना है
यह संसार कागद की पुडिया
बूंद लगे घुल जाना है
यह संसार झांड और झाँखर
उलझ पुलझ मर जाना है "
सब प्रारब्ध का खेल है, कर्म का फल है
सुन्दर रचना
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नही
या कर्मो का फल ?
सम्पूर्ण जीवन दर्शन को समाहित कर दिया इन पंक्तियों में ...आपका आभार
जीवन .. चींटी/ कब मसल जाये , कौन जाने ! बहुत सूक्ष्म अवलोकन है
सार्थक प्रस्तुति।
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्या ख्याa।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
हम पत्थर क्या खाक समेटें,
जीवन का ही मूल्य नहीं हैं,
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सूक्ष्माभिव्यक्ति और सूक्ष्मावलोकन दिखा आपकी कविता में.vaah.
bahut achcha likhi hain.
Nice thought.
भयभीत हूँ
सहमी हूँ
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
...बहुत गहन चिंतन से परिपूर्ण सुन्दर रचना..
बहुत सुन्दर रचना.
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नही
या कर्मो का फल ?
जी हाँ! निसंदेह सुख या दुःख सभी हमारे किये गए कर्मों का फल ही है जिसे हम समझ नहीं पाते. बहुत अच्छा सन्देश देती हुई सार्थक प्रस्तुति. हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नही
या कर्मो का फल ?
जी हाँ! निसंदेह सुख या दुःख सभी हमारे किये गए कर्मों का फल ही है जिसे हम समझ नहीं पाते. बहुत अच्छा सन्देश देती हुई सार्थक प्रस्तुति. हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नही
या कर्मो का फल ?
जी हाँ! निसंदेह सुख या दुःख सभी हमारे किये गए कर्मों का फल ही है जिसे हम समझ नहीं पाते. बहुत अच्छा सन्देश देती हुई सार्थक प्रस्तुति. हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
jyoti ji
ek chinti ke jariye aapne apni rachna me bahut ankahe hi abhivyakt kar diya.
bhaut hi yatharth purn prastuti
bahut bahut dhanyvaad
poonam
jyoti ji
ek chinti ke jariye aapne apni rachna me bahut ankahe hi abhivyakt kar diya.
bhaut hi yatharth purn prastuti
bahut bahut dhanyvaad
poonam
चींटी,जीवन अनोखे बिम्बों का प्रयोग |
अनसुलझे प्रश्न ?
अच्छी रचना |
जीवन की अवधि चींटी की भांति और दुदर्शा हाथी की भांति। मिलना बिछडना ,जीवन मृत्यु यह तो अटल सत्य है। दुष्परिणाम भी होसकता और कर्म का फल भी हो सकता है। वैसे रचना के अनुरुप चित्र सही लगाया है हम सब शतरंज के मोहरे है इनको चलने बाला और हमे चलाने वाला कौन है यही पता नहीं ।कहीं सरकार तो नहीं ?
मनुष्य जीवन को कभी वरदान माना जाता था। कहते हैं, मनुष्य बनने के लिए देवता भी तरसते हैं।
किंतु वर्तमान जीवनशैली के अंतर्द्वंद्व से उपजी आपकी कविता एक प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
ज्योति जी कृपया एक बार इस ब्लाग को देखें ।
यहाँ पता नहीं किसने ?? आपके बारे में कुछ लिखा है ।
ज्योति जी कृपया एक बार इस ब्लाग को देखें ।
यहाँ पता नहीं किसने ?? आपके बारे में कुछ लिखा है ।
सारी ब्लाग पता लिखना भूल गया था ।
http://yeblogachchhalaga.blogspot.com/
ज्योति जी कृपया एक बार इस ब्लाग को देखें ।
यहाँ पता नहीं किसने ?? आपके बारे में कुछ लिखा है ।
सारी ब्लाग पता लिखना भूल गया था ।
http://yeblogachchhalaga.blogspot.com/
मनुष्य के जीवन चरित्र का वर्णन बहुत ही खुबशुरत ढंग से पेश किये हैं|
----------------------------
यहाँ भी आयें|
आपकी टिपण्णी से मुझे साहश और उत्साह मिलता है|
कृपया अपनी टिपण्णी जरुर दें|
यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ... www.akashsingh307.blogspot.com
भयभीत हूँ
सहमी हूँ
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यों हो रहा ?
bahut gambheer bhavabhivyakti.
jyoti ji ,
aapke blog ka parichay rajeev ji ne ''ye blog achchha laga ''par diya hai.[http://yeblogachchhalaga.blogspot.com] par aakar apne vicharon se kritarth karen.
ये सब इंसानी फितूर का कमाल है ... जैसा इंसान करता है वैसा ही भरता है ... सच लिखा है आपने ....
जीवन की अवधि और दुर्दशा /चींटी की भांति होती जा रही है /कब मसल जाये /कुचल जाये बहुत सुन्दर प्रस्तुति उम्दा भाव ज्योति जी ज्योति प्रकाशित करती रहें शुभ कामनाएं -हम भी आप से सुझाव व् समर्थन की आशा में
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
such men kaha aapne jeevan ke safar men kab kya ho jaye kuchh pata nahin. Lekin isse dar kar ghar men to nahin baitha ja sakta. Jeevan aage badhne ka naam hai isliye hamesha pure aatm-vishvas ke saath zindgi ki dagar par chlna chahiye.
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