गुमां नहीं रहा
जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा
इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा ,
आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ
साथ के इसका एतबार नही रहा ,
मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये
हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा ,
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
देख कर तबाही का नजारा हर तरफ
अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा ,
वर्तमान की काया विकृत होते देख
भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा ,
सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी
हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l
10 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-05-2019) को
" परोपकार की शक्ति "(चर्चा अंक- 3334) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
....
अनीता सैनी
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ,मैं अवश्य आऊँगी ,नमस्कार
बहुत शाश्वत भावों वाली सार्थक रचना ।
बहुत सुंदर।
बहुत सुंदर रचना 👌👌
दिल के सुंदर एहसास
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
चिंतन मनन करती हुयी रचना ...
एक समय आता है ऐसा जब खुद का खुद पे अधिकार नहीं रहता ... यही जीवन है ...
बहुत सुंदर रचना
बहुत सुन्दर रचना ज्योति जी
बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी का
बहुत बहुत धन्यवाद साथियों
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