शीर्षक ---पतवार ................. उम्र गुजर जाती है सबकी लिए एक ही बात , सबको देते जाते है हम आँचल भर सौगात , फिर भी खाली होता है क्यों अपने मे आज ? रिक्त रहा जीवन का पन्ना जाने क्या है राज ? बात बड़ी मामूली सी है पर करती खड़ा फसाद , करके संबंधों को विच्छेदित है बीच में उठाती दीवार । सवालों में उलझा हुआ ये मानव संसार गिले - शिकवे की अपूर्णता पर घिरा रहा मन हर बार । रहस्य भरा कैसा अद्भुत है मन का ये अहसास , रोमांचक किस्से सा अनुभव इस लेन- देन के साथ , जीवन की नदियां मे चल रही है पतवार , कभी मिल गया किनारा कभी डूबे बीच मझधार । . .... .................. ज्योति सिंह