ईश्वर हो या अल्लाह
वो कहता बस यही
मुझे न चाहिये कोई जमीन
और न इमारत बड़ी बड़ी
मैं तो हूँ कण -कण में
जीवन की हर धड़कन में
याद करोगे जिस जगह
मिलूंगा तुम्हें मै वही ,
नाम हमे चाहे जो दे दो
इबादत तो है एक ही
बाँट रहे हो क्यो मुझको
मै तो हूँ सबका ही ,
मै तो हूँ नेक इरादों में
मानवता की राहों में,
प्रेम की निर्मल भावो में
घनी धूप ,ठंडी छांवो में,
इंसानियत से बढ़कर
नहीं होता धर्म कोई ,
धर्म सभी होते है सच्चे
अहसास सभी होते है पक्के
वही इनायत बरसेगी
जहाँ होगा फर्क न कोई
मैंने तो नहीं सिखाया
तुम्हें करना भेद कभी ,
न कोई हिन्दू ,न कोई मुस्लिम
है केवल यहां इंसान सभी ।
4 टिप्पणियां:
काश सभि अपने को इंसान समझ सकै तो ये दुनिया जीने लायक हो सके ...भावपूर्न ...
बहुत अच्छा ज्योति । बहुत खुशी हुई कि कलम फिर चल.पड़ी है ।
काश कि ये बात सभी समझ पाते तो बात ही क्या थी , बहुत सुन्दर पंक्तियाँ। जारी रहिये
आप सभी का तहे दिल से शुक्रियां
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