गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

दुविधा

राते छोटी

बाते बड़ी

कहने को  मेरे पास

बहुत कुछ था

तुम्हारे लिए कही

लेकिन तुम्हारे सामने

खड़े होते ही

तुम्हें देखते ही

शिकायतों ने दम तोड़ दिया

सवालों ने साथ छोड़ दिया

और मैं अपनी मौन

अवस्था मे लिपटी हुई

वापस लौट आई वही

कितनी दुविधापूर्ण स्थिति

होती है ,

यकीन की कभी- कभी

कही-कही   ।

5 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 17 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Jyoti Singh ने कहा…

धन्यवाद यशोदा जी ,अवश्य आऊँगी

Bijender Gemini ने कहा…

कविता में विचार सुन्दर है । कविता मन को छूती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
bijendergemini.blogspot.com

रेणु ने कहा…

बहुत बढिया | मन की उहापोह की स्थिति का सुंदर शब्दांकन |

Jyoti Singh ने कहा…

रेणु जी धन्यवाद ,बिजेन्दर जी धन्यवाद