ऐ चाँद
उतर कर कभी
जमीं पर तो आ
तंग गलियों के
बंद घरों की
गंदी बस्तियों में
आकर तू
फेरे तो लगा
देख आँखों में
पलती हुई बेबसी
बंद गलियों में
दम तोड़ती जिंदगी
जीने मरने की
उम्मीद लिये
सिसकती जिंदगी
आँखों में कटती
चुभती रातें
होंठो पे अटकी
अनकही बातें
देख दिल के गहरे दाग यहाँ
सुन सबके अपने हाल यहाँ
तू भी तो आँसुओं मे नहा
तू भी तो दुख में मुस्कुरा
अरे तू
छुप गया कहाँ
चाँदनी से निकल
सामने तो आ
कई रिश्ते निभाये है
तूने हमसे
अब मसीहा बनकर भी
तू हमें दिखा
ऐ चाँद उतर कर
जमीं पर तो आ.. .।
5 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
धन्यवाद
पूर्णिमा पर बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन प्रिय ज्योति दी।
वाह
बहुत सुंदर
सुन्दर सृजन - - नूतन वर्ष की असीम शुभकामनाएं।
उम्दा अभिव्यक्ति ।
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