मंगलवार, 26 मई 2009

शक के दायरे में

हर बात पे लोग टांग अडाने लगे है ,
पत्थर मार कर घर में झांकने बोल्डगे है ,
कानों को चिपका कर सुनने लगे है ,
फिर भी तसल्ली न वे पा सके हैं ,
तो शगूफे वो अपने उडाने लगे है ,
और पाठ रंग गढ़त किस्से बनाने लगे है ,
हर बात उनकी समझ से परे है ,
फिर भी कोशिशों में बराबर लगे है

3 टिप्‍पणियां:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

satya vachan.

बेनामी ने कहा…

सही बात कही है आपने, हर किसी के आस-पास ऐसा ही हो रहा है. लोग अपने से ज्यादा दूसरों के जीवन में दखलंदाजी करने में लगे है. जब तक पड़ोसियों के घर की बातें कान लगाकर न सुन लें, उनका खाना हज़म नहीं होता.

साभार
हमसफ़र यादों का.......

ज्योति सिंह ने कहा…

aap dono ke prati aabhar pragat karte huye dhanwaad karti hoon .