शक के दायरे में

हर बात पे लोग टांग अडाने लगे है ,
पत्थर मार कर घर में झांकने बोल्डगे है ,
कानों को चिपका कर सुनने लगे है ,
फिर भी तसल्ली न वे पा सके हैं ,
तो शगूफे वो अपने उडाने लगे है ,
और पाठ रंग गढ़त किस्से बनाने लगे है ,
हर बात उनकी समझ से परे है ,
फिर भी कोशिशों में बराबर लगे है

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
सही बात कही है आपने, हर किसी के आस-पास ऐसा ही हो रहा है. लोग अपने से ज्यादा दूसरों के जीवन में दखलंदाजी करने में लगे है. जब तक पड़ोसियों के घर की बातें कान लगाकर न सुन लें, उनका खाना हज़म नहीं होता.

साभार
हमसफ़र यादों का.......
ज्योति सिंह ने कहा…
aap dono ke prati aabhar pragat karte huye dhanwaad karti hoon .

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