मंगलवार, 12 मई 2009

आस -विस्वास

फिर सुबह होगी ,
फिर प्रकाश फैलेगा ,
फिर कोई नए ख्वाब का
दिन सुनहरा होगा ,
फिर पलकों पे सपने सजेंगे ,
उन सपनो में अरमान पलेंगे ,
उम्मीदों के दामन थामे ,
सारी रात जगेंगे ,
मन न कर तू छोटा ,
ख़ुद से कहते रहेंगे ,
स्वप्न कहाँ होते है पूरे ,
पर तेरे पूरे होंगे ,
आशाओ को थाम जकड़ के ,
सारी उम्र रटेंगे ,
हम भी अन्तिम साँसों तक ,
अपने ख्वाब बुनेंगे ,
मिथ्या आसो से बंधकर ,
सपनो से वादे होंगे ,
अनजाने में ही सही कभी
उम्मीद तो पूरे होंगे ,
पंखहीन होकर भी हम ,
आशाओ के उड़ान भरेंगे ,
कुछ ख्वाब हमारे ऐसे ही ,
ठहर कर पूरे होंगे ,
निराश न कर तू मन ,
कुछ ऐसे वक्त भी होंगे ,
ज़िन्दगी इतनी आसानी से ,
देती कहाँ सभी कुछ ,
संघर्षो के बिना है होता ,
हासिल कहाँ हमें कुछ ,
भाग्य रेखाओ को झुठलाते ,
आगे बढ़ते जायेंगे ,
रेखाओ के खेल है ,
बनते -मिटते रहते है ,
हर नए दिन जो आते है ,
उम्मीद लिए ढलते है ,
वादे तो ख्वाबो में पलते है ,
ये सिलसिले यूही चलेंगे

4 टिप्‍पणियां:

के सी ने कहा…

ज्योति जी बड़ी सुन्दर कविता लिखी है, हर बार एकदम नयी एकदम तजा विचारों से भरी कविता ले कर आती हैं आप. बधाई और वंदना जी की साहित्यिक समझ आला दर्जे की है.

ज्योति सिंह ने कहा…

aap jaise rachnakar se agar taarif mil jaye to ye mera soubhagya hai .is duniya me mere bahut karib do log hai usme bhi aage vandana ji hai .main apni rachna sabse pahle unhe hi padhati hoon .aur uchit salah bhi leti .

Unknown ने कहा…

बहुत सकारात्मक कविता लगी आपकी । कहीं कहीं कुछ शब्द कमजोर रहे पर भाव बेहद उन्दा लगा । धन्यवाद

ज्योति सिंह ने कहा…

shukriya .