हम -तुम
इस दुनिया की भीड़ में
हम -तुम तन्हा चलते है ,
थाम हमारे इन हाथों को
इन राहों पे निकलते है ,
घुँघरू की झंकारों सी
है झंकृत होती खामोशी ,
हल्की मुस्कानों की आभा से
लबो पे एक किरण बिखरी ,
आपस में इन नज़रो ने
कही बातें अनकही ,
यदि अंत न हो राहों का
तो ये सफर थमता न कही ,
ख्यालों में गुमसुम होकर
हम चलते रहते यूँ ही ।
हम -तुम तन्हा चलते है ,
थाम हमारे इन हाथों को
इन राहों पे निकलते है ,
घुँघरू की झंकारों सी
है झंकृत होती खामोशी ,
हल्की मुस्कानों की आभा से
लबो पे एक किरण बिखरी ,
आपस में इन नज़रो ने
कही बातें अनकही ,
यदि अंत न हो राहों का
तो ये सफर थमता न कही ,
ख्यालों में गुमसुम होकर
हम चलते रहते यूँ ही ।
टिप्पणियाँ
sunder abhivyakti.
है झंकृत होती खामोशी ,
khmoshi ka itna sundar rup aapki hi shj abhivykti ho skti hai .
aapki ashavadi soch aapki rchnao ko purnta prdan karti hai .
itne dino bahar rhne ke bad aapka svagt hai blog me aapko na pakar suna suna lg rha tha.
बहुत उम्दा. जारी रहें.
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Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
aapakee rachanaae bahut pyaree aur jhajhorne walee hai.ab yanhaa aanaa hota rahegaa .
लेकर सुकून दे जाता है मन को ...
आभार आपकी इस सुन्दर सी रचना के लिए ..
sou yojan marubhumi par kar
kavita ke prantar mein jana
bin chhalkaye man ke ghat mein boond boond jal bhar kar lana
ye dinesh kmar shukla ki panktiyan hain