कभी -कभी ऐसा भी...........
दिन भर की भाग -दौड़ के बाद
जब बिस्तर पर लेटे होगे ,
और मेरे ख्यालों को लपेटे
आँखे मूँद सोचे होगे ,
अच्छी बुरी कई बातें
तुम्हारी नज़रों में होगी ,
पर मेरी बेतुकी बातें तुमको
तकलीफे दे रही होंगी ।
अनचाहे मन से मुझको
भला -बुरा कहते होगे ,
एक पल अपना
एक पल पराया
महसूस तुम्हे होता होगा ,
इतनी दुविधाओ में भी
चाहत नही मिटती होगी ।
और मेरी अच्छाई का
ख्याल उन्हें आता होगा ,
जिसकी वज़ह से ये बंधन
वही ठहर जाता होगा ।
टिप्पणियाँ
सादगी , सरलता और संजीदगी ...इनका यह त्रिवेणी संगम है ...! किसी के मन में झाँक के लिखना आसान नही...जो इतना ब-खूबी आपने किया है...
jyoti ji, badhaai.
रिश्तो का उतार चढाव उसे आयाम देता है
बखूबी आपने एहसास को शब्द दिया है.
एक मासूमियत भरी अभिव्यक्ती से रिश्तों का बंधन मज़बूत और प्रगाढ़ होता हुआ वहीं ठहर जाता है....
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
एक पल पराया
महसूस तुम्हे होता होगा ,
इतनी दुविधाओ में भी
चाहत नही मिटती होगी ।
और मेरी अच्छाई का
ख्याल उन्हें आता होगा ,
जिसकी वज़ह से ये बंधन
वही ठहर जाता होगा ।
और मेरी अच्छाई का
ख्याल उन्हें आता होगा ,
जिसकी वज़ह से ये बंधन
वही ठहर जाता होगा ।
चाहत नही मिटती होगी ।
और मेरी अच्छाई का
ख्याल उन्हें आता होगा ,
जिसकी वज़ह से ये बंधन
वही ठहर जाता होगा ।
सुन्दर और गहरे भाव से भरी आपकी ये कविता दिल को छू गई.
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
aur andar hi ki udherh-bun ko
bayaan karti hui bahut achhee kavita....badhaaee .
---MUFLIS---