जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा , आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ साथ के इसका एतबार नही रहा , मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा , जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा , देख कर तबाही का नजारा हर तरफ अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा , वर्तमान की काया विकृत होते देख भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा , सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l
टिप्पणियाँ
'नासूर 'हो जाते है
बहुत सुंदर लिखा आप ने,
'नासूर 'हो जाते है...
KAMAAL KA LIKHA HAI .. KUCH JAKHM POORI UMR RISTE RAHTE HAIN ...
साधारण शब्दों से असाधारण बात कही है .
'नासूर 'हो जाते है...
वाह बहुत सुंदर पंक्तियाँ है! बिल्कुल सही कहा है आपने! इस ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई !
dhanyvad
जिगरे नासूर से रह-रह के रिसता ये बादल.
ये बादल नहीं अवसाद है,किसी का
जो मन को भिगोये,ये अहसास है उसी का