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जियो और जीने दो ....
बात अपनी होती है तब जीने की उम्मीद को रास्ते देने की सोचते है वो , बात जहाँ औरो के जीने की होती है , वहाँ उनकी उम्मीद को सूली पर लटका बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते कील ठोकते हुये दम घोटने पर मजबूर करते है । रास्ते के रोड़े , हटाने की जगह बिखेरते क्यों रहते हैं ? ........................................ इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .
कथा सार
कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।

टिप्पणियाँ
हमने सर ही नहीं दिल भी झुका दिये...
.वाह ज्योति जी, वाह ...ये बहुत खूब हैं
और कैसे उसे शब्द दे देती हैं आप ,बधाई हो
हमने सर ही नही ,
दिल भी झुका दिये
padh kar ek gane k bol yaad aa gaye...
neeva (jhuk) ho ke chal o bandeya (insan)....
neeviya nu (jhuke huo ko) rab milda..
तुम दुआ हो हमारे
या अँधेरी रात में
जगमगाते सितारे ,
ye apni apni soch k upar hai...
acchi positive attitude deti rachna.