हाँ ,ऐसा होता है जीवन में कभी कभी जब संशय की स्थिति आती है... उद्देश्य से भटक न जाएँ बस ...राहें चाहे बदलनी पड़ें. चंद पंक्तियों में अच्छी भावाभिव्यक्ति की है.
ज्योति जी, एक बार फिर कविता में भाव स्पष्ट नहीं हो सके. अनजान से रास्ते , पहचान लिए साथ में , इन पंक्तियों को तो बिल्कुल ही नहीं समझ पा रहा. हो सकता है, मेरा कविता-ज्ञान ही कम हो.
बात अपनी होती है तब जीने की उम्मीद को रास्ते देने की सोचते है वो , बात जहाँ औरो के जीने की होती है , वहाँ उनकी उम्मीद को सूली पर लटका बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते कील ठोकते हुये दम घोटने पर मजबूर करते है । रास्ते के रोड़े , हटाने की जगह बिखेरते क्यों रहते हैं ? ........................................ इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .
ओस की एक बूँद नन्ही सी चमकती हुई अस्थाई क्षणिक रात भर की मेहमान ___ जो सूरज के आने की प्रतीक्षा कतई नही करती , चाँद से रूकने की जिद्द करती है , क्योंकि दूधिया रात मे उसका वजूद जिन्दा रहता है , सूरज की तपिश उसके अस्तित्व को जला देती है ।
कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।
टिप्पणियाँ
उद्देश्य से भटक न जाएँ बस ...राहें चाहे बदलनी पड़ें.
चंद पंक्तियों में अच्छी भावाभिव्यक्ति की है.
अनजान से रास्ते ,
पहचान लिए
साथ में ,
इन पंक्तियों को तो बिल्कुल ही नहीं समझ पा रहा. हो सकता है, मेरा कविता-ज्ञान ही कम हो.
प्रेरणादायी रचना ।
अति प्रशंसनीय ।