शनिवार, 12 जून 2010

संशय


अनजान से रास्ते ,
पहचान लिए
साथ में ,
चल रहे हम
दिशा की ख़बर नही ,
चाह फिर भी ,
बढ़ने की ,
राह तो
कही नही ,
भूल रहे हम ।

7 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Alpana Verma ने कहा…

हाँ ,ऐसा होता है जीवन में कभी कभी जब संशय की स्थिति आती है...
उद्देश्य से भटक न जाएँ बस ...राहें चाहे बदलनी पड़ें.
चंद पंक्तियों में अच्छी भावाभिव्यक्ति की है.

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर!!

Unknown ने कहा…

ज्योति जी, एक बार फिर कविता में भाव स्पष्ट नहीं हो सके.
अनजान से रास्ते ,
पहचान लिए
साथ में ,
इन पंक्तियों को तो बिल्कुल ही नहीं समझ पा रहा. हो सकता है, मेरा कविता-ज्ञान ही कम हो.

रचना दीक्षित ने कहा…

आपका संशय सही है कभी कभी सबको होता है और ये एक जागरूक प्रवृत्ति की निशानी भी है

अरुणेश मिश्र ने कहा…

विचार फिर पुनर्विचार ।
प्रेरणादायी रचना ।
अति प्रशंसनीय ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.