आधुनिकता ........
आधुनिकता परिधानों में नही
आधुनिकता दिखावे में नही ,
आधुनिकता झलकती है
अपने विचारो से ,
आधुनिकता दिखती है
अपने व्यवहारों में ,
आधुनिकता सुसंस्कार में
आधुनिकता पावन प्यार में ।
अश्लीलता से सर झुकता है
अभद्रता से रिश्ता टूटता है ,
रेशमी परदे से हालात ढकते नही
कर्जो पर शान -शौकत टिकते नही ,
शालीनता में रहकर शिष्टता निभाये
अपनी सुसंस्कृति को आगे बढ़ाये ,
धर्म के नाम पर झंडे न लगाये
जाति -पाति पर सवाल न उठाये ।
जहाँ भूख बिलखती है
दो रोटी के आस में ,
पेट को वो ढकती है
अपने दोनों पाँव से ,
लाचार खड़ा होता है
आदमी जहाँ इलाज में ,
घर छीन लिया जाता
जहाँ वृद्धों के हाथ से ,
भेदभाव पनपते है यहाँ
अमीरी -गरीबी से ,
इमानदारी खरीद ली जाती
नोटों की गड्डी से ।
हालात जिस देश के हो इतने गरीब
बेचकर इंसानियत और जमीर ,
हम कैसे कह सकते है कि
हम है यहाँ आधुनिक ।
टिप्पणियाँ
आजके समाज का यथार्थ चित्रण किया है आपने. दिखावा एक अभिन्न अंग हो गया है जीवन का. बहुत सुंदर.
हालात जिस देश के हो इतने गरीब
बेचकर इंसानियत और जमीर ,
हम कैसे कह सकते है कि
हम है यहाँ आधुनिक ।
बधाई स्वीकार करें.
आधुनिकता दिखावे में नही ,
आधुनिकता झलकती है
अपने विचारो से ,
आधुनिकता दिखती है
अपने व्यवहारों में ,
आधुनिकता सुसंस्कार में
आधुनिकता पावन प्यार में
kyaa baat hai !
jyoti ji ,bahut sundar kavita hai,jeevan ke kai pahluon ko chhoo liyaa aap ne,bahut sundarta se sachchaaee kaa varnan kiya hai
badhaai
नमस्कार !
रचना का अनूठा और बिम्बात्मक अन्दाज लाजवाब
bahut hi spasht`taa se
bahut steek aur arth-poorn shabdoN meiN kriti rachee hai aapne ...
kaash....
hm ab bhi sambhal paaeiN to...
a b h i v a a d a n .
हालात जिस देश के हो इतने गरीब
बेचकर इंसानियत और जमीर ,
हम कैसे कह सकते है कि
हम है यहाँ आधुनिक ।
बहुत सुंदर, धन्यवाद
अभद्रता से रिश्ता टूटता है ,
रेशमी परदे से हालात ढकते नही
कर्जो पर शान -शौकत टिकते नही ,
शालीनता में रहकर शिष्टता निभाये
अपनी सुसंस्कृति को आगे बढ़ाये ,
धर्म के नाम पर झंडे न लगाये
जाति -पाति पर सवाल न उठाये ।
itni pyari baat...wo bhi sadhe hue sabdo me...bahut bahut abhaar...mann khush ho gaya..:)
अपनी सुसंस्कृति को आगे बढ़ाये...
वाह...क्या बात है ज्योति जी,
इस उम्दा लेखन के लिए बधाई स्वीकार कीजिए.
मूल बात यही है ...मगर हम एक दूसरे की नक़ल करते वास्तविक अर्थ भूलने लगते हैं ...
अच्छी कविता ...सार्थक सन्देश !
आपने सही कहा ,आज आधुनिकता की परिभाषा बदल गयी है !
उपरी दिखावे को ही हम आधुनिकता की पहचान मान बैठे हैं !
आपकी कविता अंतर्मन की संवेदना से प्रस्फुटित हुई है !
सुन्दर अभिव्यक्ति !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
---------
बोलने वाले पत्थर।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
mere blog ''vikhyat' par aapka hardik swagat hai .
विचारों को उतार फेंकने का नाम है.आपकी कलम को साधूवाद .
आधुनिकता का सही चित्रण किया आपने.....
अच्छा लगा पढ़कर....
बहुत दिनों से आपका शेष फिर पर आना नही हुआ है यह बात मुझे अभी पता चली जब मै अपने कुछ पुराने कमेंट्स पढकर ऊर्जा बटोर रहा था आप मेरी कमअक्ली और काहिली के बाद भी अपने बडप्पन के साथ शेष फिर अपने कमेट्स प्रेषित करती रहती थी।
कुछ व्यस्तता है या मेरे निठल्ले चिंतन से अरुचि हो गई है।
आपका आना एक उपलब्धि है, उम्मीद करता हूँ कि ये सिलसिला फिर से चल पडेगा।
सादर
डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
www.meajeet.blogspot.com
और हां, क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
फोटोग्राफर को मेरी बधाई दीजिये ! बेहतरीन फोटो है यह ....
आप मेरे ब्लॉग पे भी आये |
मैं अपने ब्लॉग का लिंक दे रहा हु
http://vangaydinesh.blogspot.com/