ओस ...



ओस की एक बूँद

नन्ही सी

चमकती हुई

अस्थाई क्षणिक

रात भर की मेहमान ___

जो सूरज के

आने की प्रतीक्षा

कतई नही करती ,

चाँद से रूकने की

जिद्द करती है ,

क्योंकि

दूधिया रात मे

उसका वजूद जिन्दा

रहता है ,

सूरज की तपिश

उसके अस्तित्व को

जला देती है ।

टिप्पणियाँ

केवल राम ने कहा…
दूधिया रात मे
उसका वजूद जिन्दा
रहता है ,
सूरज की तपिश
उसके अस्तित्व को
जला देती है ।

हर किसी को अपने अस्तित्व का ख्याल रहता है ..चाहे ओंस की बूंद हो या कोई और जिससे उसका बजूद बचता है वह उससे रुकने का आह्वान करता है ...आपका आभार
सूरज के द्वारा वाष्पित कर देने का भय भी उसे शीतलता बिखेरने से नहीं रोकता है।
परिस्थितियों मजबूर कर देती है अपने आस्तित्व को बचाने के लिए समझौता करने को. पर इस भय से भयाक्रांत हुए बिना अपना प्रभाव छोड़ना ही सच्चे जीवन की सफलता है.
Rakesh Kumar ने कहा…
ओस की बूँद के माध्यम से मृदुल कोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने.उसे द्वैत भाव में जीना अधिक अच्छा लगता है,क्योंकि सूर्य की तपिश से तो वो एकाकार हो जायेगी सूर्य के साथ ,अपने खुद के अस्तित्व को मिटा कर.
इन्हीं ओस की बूंदों में न जाने कितने जीवन की कहानी भी छुपी होती है ! हम भी तो अपना अस्तित्व बचाने के लिए डर डर कर जीने के लिए मज़बूर होते हैं !
आपकी कविता में संवेदना की असीमित गहराई होती है !
आभार !
आदरणीय ज्योति सिंह जी
नमस्कार !
ओस की बूँद के माध्यम से मृदुल कोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
ओस की बूँद का सुंदर बिम्ब और कोमल भाव .....बेहतरीन रचना बन पड़ी है.......
Asha Joglekar ने कहा…
चांद से रुकने का मनुहार करती ओस की बूंद का कितना मोहक शब्द चित्र उकेरा है आपने । बधाई ।
सच कहा है .. ओस की बूँद का अस्तित्व क्षणिक ही होता है ... पर अपनी पहचान छोड़ जाता है ...
दूधिया रात मे
उसका वजूद जिन्दा
रहता है ,
सूरज की तपिश
उसके अस्तित्व को
जला देती है ।
... bahut achhi rachna
इस्मत ज़ैदी ने कहा…
जो सूरज के

आने की प्रतीक्षा

कतई नही करती ,

चाँद से रूकने की

जिद्द करती है ,

kyaa bat hai! bahut sundar !man ko chhoo gai ap ki ye kavita
badhai ho
vandana gupta ने कहा…
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (31-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत खूब ...सुन्दर अभिव्यक्ति
हरकीरत ' हीर' ने कहा…
जहाँ शीतलता मिले मानुष वही आकर्षित होता है
बहुत अच्छे भाव ....!!
Apanatva ने कहा…
chand shavdo me gahra darshan.......
honee taltee nahee.
aae hai to jana hee hai.....
Udan Tashtari ने कहा…
बहुत उम्दा रचना.
शोभना चौरे ने कहा…
ओस की बूँद ही अपने आप में खूबसूरत है उस पर चाँद की चांदनी |बहुत सुन्दर रचना |
Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
बेहतरीन रचना....
mridula pradhan ने कहा…
wah. bahut khoobsurat hai oos ki yah boond....
Kunwar Kusumesh ने कहा…
नव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई
यह रचना केवल एक भावपूर्ण कविता ही नहीं है बल्कि इसमें जीवन दर्शन भी समाहित है।
मदन शर्मा ने कहा…
दूधिया रात मे
उसका वजूद जिन्दा
रहता है ,
सूरज की तपिश
उसके अस्तित्व को
जला देती है ।
भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है. इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ……
jyoti ji
itna sab janane ke bavjud aos ki nanhi si bund jab talak rahti hai patto pr baithi hui apni sudarta avam soumyta ko samet kar sbhi ke dil ko ek alag si khushi pradan karti hai .
yah jante hue bhi ki uska jeevan xhnik hi hai.
bahut sarthakaur seekh dene wali rachna
badhai
poonam
BrijmohanShrivastava ने कहा…
ओस की बूंद सूरज के आने की बैसे ही प्रतीक्षा नहीं करती जैसे जैसे आदमी बुरे वक्त की प्रतीक्षा नहीं करता मगर आता है सूरज भी आता है अस्तित्व भी नष्ट होता है मगर पुन दूसरी रात उसे जीवन मिलता है यही क्रम अनवरत चलता रहता है । यही जीवन है चाहे ओस का हो या मानव का।
hamarivani ने कहा…
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

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