परिस्थितियों मजबूर कर देती है अपने आस्तित्व को बचाने के लिए समझौता करने को. पर इस भय से भयाक्रांत हुए बिना अपना प्रभाव छोड़ना ही सच्चे जीवन की सफलता है.
ओस की बूँद के माध्यम से मृदुल कोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने.उसे द्वैत भाव में जीना अधिक अच्छा लगता है,क्योंकि सूर्य की तपिश से तो वो एकाकार हो जायेगी सूर्य के साथ ,अपने खुद के अस्तित्व को मिटा कर.
इन्हीं ओस की बूंदों में न जाने कितने जीवन की कहानी भी छुपी होती है ! हम भी तो अपना अस्तित्व बचाने के लिए डर डर कर जीने के लिए मज़बूर होते हैं ! आपकी कविता में संवेदना की असीमित गहराई होती है ! आभार !
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है कल (31-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
दूधिया रात मे उसका वजूद जिन्दा रहता है , सूरज की तपिश उसके अस्तित्व को जला देती है । भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है. इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ……
jyoti ji itna sab janane ke bavjud aos ki nanhi si bund jab talak rahti hai patto pr baithi hui apni sudarta avam soumyta ko samet kar sbhi ke dil ko ek alag si khushi pradan karti hai . yah jante hue bhi ki uska jeevan xhnik hi hai. bahut sarthakaur seekh dene wali rachna badhai poonam
ओस की बूंद सूरज के आने की बैसे ही प्रतीक्षा नहीं करती जैसे जैसे आदमी बुरे वक्त की प्रतीक्षा नहीं करता मगर आता है सूरज भी आता है अस्तित्व भी नष्ट होता है मगर पुन दूसरी रात उसे जीवन मिलता है यही क्रम अनवरत चलता रहता है । यही जीवन है चाहे ओस का हो या मानव का।
जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा , आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ साथ के इसका एतबार नही रहा , मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा , जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा , देख कर तबाही का नजारा हर तरफ अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा , वर्तमान की काया विकृत होते देख भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा , सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l
जिंदगी वफ़ा की सूरत जब इख्तियार करती है हर कदम पर तब नए इम्तिहान से गुजरती है . .............................. ... कितनी सुबह निकल गई कितनी राते गुजर गई कुछ बाते पहली तारीख सी आज भी है यही कही . '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''' मंजिल इतनी आसान होती तो क्योकर तलाशते क्यों उम्र अपनी सारी यू दाव पर लगाते . ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; जो मजा सफ़र में है वो मंजिल में कहाँ थम जाती है जिंदगी सब कुछ पाकर यहाँ .
टिप्पणियाँ
उसका वजूद जिन्दा
रहता है ,
सूरज की तपिश
उसके अस्तित्व को
जला देती है ।
हर किसी को अपने अस्तित्व का ख्याल रहता है ..चाहे ओंस की बूंद हो या कोई और जिससे उसका बजूद बचता है वह उससे रुकने का आह्वान करता है ...आपका आभार
आपकी कविता में संवेदना की असीमित गहराई होती है !
आभार !
नमस्कार !
ओस की बूँद के माध्यम से मृदुल कोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
उसका वजूद जिन्दा
रहता है ,
सूरज की तपिश
उसके अस्तित्व को
जला देती है ।
... bahut achhi rachna
आने की प्रतीक्षा
कतई नही करती ,
चाँद से रूकने की
जिद्द करती है ,
kyaa bat hai! bahut sundar !man ko chhoo gai ap ki ye kavita
badhai ho
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (31-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत अच्छे भाव ....!!
honee taltee nahee.
aae hai to jana hee hai.....
उसका वजूद जिन्दा
रहता है ,
सूरज की तपिश
उसके अस्तित्व को
जला देती है ।
भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति की है
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है. इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ……
itna sab janane ke bavjud aos ki nanhi si bund jab talak rahti hai patto pr baithi hui apni sudarta avam soumyta ko samet kar sbhi ke dil ko ek alag si khushi pradan karti hai .
yah jante hue bhi ki uska jeevan xhnik hi hai.
bahut sarthakaur seekh dene wali rachna
badhai
poonam