गुमां नहीं रहा
जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा , आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ साथ के इसका एतबार नही रहा , मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा , जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा , देख कर तबाही का नजारा हर तरफ अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा , वर्तमान की काया विकृत होते देख भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा , सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l
टिप्पणियाँ
प्रेम दिवस की हार्दिक बधाई।
सार
आँखों से बयाँ तो हो ही गया होगा !
सुंदर प्रस्तुति !
http://drivingwithpen.blogspot.in/
ईद का चाँद होती जा रही हैं, आज कल कहाँ है ज्योति जी?
MY NEW POST ...कामयाबी...
rachana
http://4timeprayer4u.blogspot.in/
गहरी रचना के साथ भाव रक्खे हैं ...
MY NEW POST ...काव्यान्जलि...सम्बोधन...
अहम निर्णय है.
ज्ञानीजन और अज्ञानीजन की चुप्पी
के अपने अपने कारण हैं.
वैसे चुप रहना भी एक बहुत बड़ा गुण है.
ज्ञानियों की सभा में यदि मूर्ख चुप रह पाए
तो वह भी ग्यानी ही समझ लिया जाता है.
इसलिए भर्तहरी ने 'चुप' को अज्ञानियों का
गहना बताया है.
आप मेरे ब्लॉग पर आतीं हैं तो मुझ में
नए उत्साह का संचार हो जाता है.
बहुत बहुत हार्दिक आभार आपका,ज्योति जी.
NEW POST...फुहार...हुस्न की बात...
MAUN EK SASHKAT ABHIWYAKTI HAI.
BAS AB AAPAKI BARI HAI USE SAMAJHANE KI.
SUNDAR RACHANA.GAGAR MEN SAGAR.
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...