जियो और जीने दो ....
बात अपनी होती है तब जीने की उम्मीद को रास्ते देने की सोचते है वो , बात जहाँ औरो के जीने की होती है , वहाँ उनकी उम्मीद को सूली पर लटका बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते कील ठोकते हुये दम घोटने पर मजबूर करते है । रास्ते के रोड़े , हटाने की जगह बिखेरते क्यों रहते हैं ? ........................................ इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .
टिप्पणियाँ
मसीहा होने में आत्मबोध और आत्मबल की
आवश्यकता है.
सुन्दर प्रस्तुति....
आभार ज्योति जी.
bahut dino ke baad phir blogging kee aor muda hoo . aapke blog par ab aate rahunga . aap kaisi hai
aapka phone number kho gaya hai . ek baar call kariye .
ye nazm bhi apne aap me bahut kuch kahti hai
dhaywaad
vijay
09849746500