इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट
जियो और जीने दो ....
बात  अपनी  होती  है तब जीने  की  उम्मीद  को रास्ते  देने  की सोचते  है  वो  , बात  जहाँ  औरो  के जीने  की  होती  है  , वहाँ  उनकी  उम्मीद  को सूली   पर  लटका बड़े  ही  आहिस्ते  -आहिस्ते कील  ठोकते  हुये दम   घोटने   पर मजबूर  करते  है  । रास्ते  के  रोड़े , हटाने  की  जगह बिखेरते   क्यों रहते  हैं   ? ........................................ इसका  शीर्षक  कुछ  और  है  मगर  यहाँ  मैं  बदल  दी  हूँ  क्योंकि  यह  एक  सन्देश  है  उनके  लिए  जो किसी  भी  अच्छे  कार्य  में  सहयोग  देने  की  जगह  रोक  -टोक   करना ज्यादा  पसंद  करते  .
कथा सार
कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।

 
 
टिप्पणियाँ