बंजारों की तरह ....

बंजारों की तरह अपना ठिकाना हुआ

रिश्ता हर शहर से अपना पुराना हुआ,

स्वभाव ही है नदियों का बहते रहना

मौजो को रुकना कब गवारा हुआ ,

बेजान से होते है परिंदे बिन परवाज के

उड़े बिना उनका कहाँ गुजारा हुआ ,

चाह है जिसे  मंजिल पाने की

रास्ता ही उनका सहारा हुआ  ।

टिप्पणियाँ

मंजिल की तलाश है तो राहों से प्रेम तो करना होगा ...
खूबसूरत पंक्तियाँ हैं ...
वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
Jyoti Singh ने कहा…
वाह शुक्रिया आप दोनों की टिप्पणी ने मन खुश कर दिया
Sweta sinha ने कहा…

 जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 10 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Anuradha chauhan ने कहा…
बहुत सुंदर रचना
मन की वीणा ने कहा…
वाह बहुत सुंदर।
रास्ता ही उनका सहारा हुआ ।
सुंदर सृजन।

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