आदमी, आदमी से आदमी का
पता पूछता है
खुदा का बंदा खुदा को
हर बन्दे में ढूँढता है ।
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शैतानों के बीच रहकर
इंसानो का गुजारा नामुमकिन
दोनों में से किसी एक का
बदलना है मुमकिन ।
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सिलसिला बरकरार रहा
हर दौर का, हर दौर में
शामिल रहा कुछ न कुछ
हर दौर का, हर दौर में ।
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जोश में होश
गवा बैठते है
बात तभी हम
बिगाड़ बैठते है ।
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ज़िन्दगी में बहार है तो
उम्र भी दरकार है
जिंदगी यदि बेजार है तो
उम्र भी बेकार है ।
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नमस्कार ,शुभ प्रभात मित्रों
7 टिप्पणियां:
जिन्दगी में बहार लाने का प्रयास जिंदगी है ...
अच्छी हैं सभी चार लाइनें ...
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 28 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सही बात है दिगम्बर जी ,शुक्रियां आपका
धन्यवाद एवं नमस्कार दिग्विजय जी ,हृदय से आभारी हूँ ।
सुन्दर सृजन
जोश में होश
गवा बैठते है
बात तभी हम
बिगाड़ बैठते है ।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर सटीक सृजन।
धन्यवाद सुधा जी सादर आभार
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