एकांत का संसार
एकांत का संसार
स्मृतियों में डूबा...भला, बुरा सोचता
प्रश्नों से जूझता...हलों को ढूंढ़ता
कल को खोजता...आज में जीता
आस को जगाता...बिश्वास को सूली पे
लटका हुआ कभी पाता
टूटता, बिखरता...अंतर्मन के द्वन्द लिए
जीतता तो कभी हारता
दुख में उदास होकर...रोता बिलखता
सुख का ध्यान कर...हँसता मुस्कुराता
भविष्य की चिंता करता
कभी परिस्थितियों पे...विचार करता
थोड़ा सामने जाता...फिर पीछे हट जाता
अकेले रहने पर मनुष्य..
स्वाभाविक रूप से
विचारों में उलझा रहता हैं
मौन व्रत धारण किए
स्वतंत्र रूप से जीता....
वो अपनी जिस दुनिया में
वही हैं.....उसका अपना संसार
एकांत का संसार
जो देता हैं जीवन को विस्तार...
ज्योति सिंह 🙏🙏
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