चाँद सिसकता रहा
चाँद सिसकता रहा
शमा जलती रही ,
खामोशी को तोड़ता हुआ
दर्द कराहता रहा ,
और फ़साना उंगुलियां
कलम से दोहराती रही ,
आँखों के अश्क में
शब्द सभी नहाते रहे ,
रात के अँधेरे में
ख्याल लड़खड़ाते रहे ,
एक लम्बी आह में
शब्द ठहर गए ,
उंगुलियां बेजान हो
साथ कलम का छोड़ गई ,
दर्द से लिपट
असहाय बनी रही ,
और लिखे क्या
बात लिखने की रही नहीं ,
और फ़साने गढे नहीं
रह गये अधूरे कही ,
शून्य सा समा बाँध
चाँद भी बेबस रहा ।
चाँद सिसकता रहा ........... ।
टिप्पणियाँ
साथ कलम का छोड़ गई ,
दर्द से लिपट
असहाय बनी रही ,
और लिखे क्या
बात लिखने की रही नहीं ,
और फ़साने गढे नहीं
रह गये अधूरे कही ,
शून्य सा समा बाँध
चाँद भी बेबस रहा ।
चाँद सिसकता रहा ........... ।
dard jab had se gujar jaata hai tab hi karishma hota hai...aisa hikuch suna tha...aaj dekh bhi liya..
khoobsurat rachna...
सुन्दर, गहन भावों से भरी बढ़िया प्रस्तुति.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
ख्याल लडखडाते रहे
एक लम्बी आह में .....
वाह......वो आह ही तो थी
जो बीजी थी आसमां ने इक दिन
दर्द के आँचल में
तभी तो अंधेरों में जब वो लडखडाती है
कई फसाने गढ़ने लगता है चाँद
सितारों के आगोश में .....
बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता |ऐसी ही कलम के माध्यम से रश्मिजी ने बहुत सुन्दर बात कही है \संयोग है कि एक ही दिन कलम पर अलग अलग कविता पढ़ने को मिली |
बधाई
this is the ultimate work of words.. mujhe aapki ye kavita bahut pasand aayi . man ko choo gayi aur haan aankho ko bhi bhigo gayi ...
is post ke liye meri badhai sweekar kare..
dhanywad
vijay
www.poemofvijay.blogspot.com
i sent you a request jyoti ji ..