जाल...
कह कर भी
कुछ नही कहा ,
गुमसुम सा हुआ
दिल क्यो यहाँ ,
कितने सवाल
तुम्हारे होठों पे ,
देख रहे हम
इन आंखों से ,
क्या बात हुई जो
हम समझ न पाये ,
क्यो कहते -कहते
तुम कह न पाये ,
अब तो कुछ
बोल भी दो ,
इस भ्रम को
कही तोड़ भी दो ,
तुम्हारी तो
तुम्ही जानो ,
पर इस बन्दे पे
रहम करो ,
संदेह का यह
जाल बिछाकर ,
दूरी यू न
बसर करो ।
टिप्पणियाँ
तुम्हारे होठों पे ,
देख रहे हम
इन आंखों से ,
क्या बात हुई जो
हम समझ न पाये ,
क्यो कहते -कहते
तुम कह न पाये ,
कुछ बाते ऎसी होती है जो बोल कर अपना अर्थ ही खो देती है, यह शव्द भी अन बोले बहुत कुछ कह जाते है.
बहुत ही सुंदर कविता.
धन्यवाद
मेरे इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
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कुछ नही कहा ,
गुमसुम सा हुआ
दिल क्यो यहाँ ,
wakai Jyoti ji...
Kabhi keh kar bhi kuch nahi keh paate aur kabhi bin kahe hi dil kitna kuch bol samajh leta ha na?
FLAWLESS !!