परछाईयाँ
ये मीलो की खामोशियाँ
दर्द से घिरी तन्हाईयाँ ,
नींद की जुदाईयाँ
ये रात की कहानियाँ ,
कर दिया चेहरे ने जाहिर
तेरी अपनी परेशानियां ,
बता रही है बखूबी
तेरे यार की रुसवाइयां ,
माथे की दरारों में
सिमटी है बेवफाइयाँ ,
सुलग रही साँसों में
चिंता की चिंगारियां ,
और मन को तोड़ने लगी
यकीं की लाठियाँ ,
बेरुखी दिखाने लगी
अपनी ही परछाईयाँ ।
टिप्पणियाँ
यकीं की लाठियाँ ,
in pnktiyo ne to nishabd kar diya
sach kitni anubhvi bat khi hai .
bahut achhi rachna .abhar