है प्यार का बंधन रक्षाबंधन
राखी का पर्व हमारे देश मे बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है । यह बाजारों की सजावट देखने पर ही समझ आ जाता है ,जो एक महीने पहले से ही रंगबिरंगी राखियों से जगमगा उठता है .क्योंकि यह सिर्फ रस्म नही बल्कि मान -सम्मान आपसी प्यार का त्यौहार है ,इसमें रिश्तों की गहराई है ,पवित्रता है । तभी तो इसे भाई -बहन का पावन पर्व कहा गया है ।
क्योंकि ये वो रिश्ता है जिन्हें हम बचपन से एक ही आँगन मे जीते है ,आपस के सुख -दुख सभी इसके साझेदार होते है ,भाई -बहन एक ही शाखा के अलग अलग टहनियां है जो एक दूजे का सहारा बनते हुए बड़े होते है । पर बहने जब ब्याह कर चली जाती है तब यही एक दिन ऐसा होता है जब दोनों को सारे गुजरे दिनों से जोड़ता है । इस निश्छल भावनाओ का कोई मोल नही होता ,जिन्हें सिर्फ हम मनाते नही जीते भी है । हमारी जिंदगी मे इस पर्व का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है तभी हम इसे बहुत ही उत्साह और उमंग के साथ मनाते आये है । बचपन से मेरे भाई को इतना पसंद है यह त्यौहार कि एक महीने पहले से इसकी तैयारी के बारे मे जानने को उत्सुक रहता है । मैं नौ -दस वर्ष तक अपने हाथो से राखी बना कर भेजती रही और वो हर बर्ष मुझे कहता दीदी इस बार की राखी और सुन्दर होनी चाहिए और उसकी इच्छा को ध्यान मे रखते हुए मैं बड़े बड़े पाट तैयार कर महीनो आगे जमा देती फिर उसे सजाती कढाई और तरह तरह के डिजाइन से ,फिर विधिवत उसे पार्सल करती ,क्योंकि मैं बनस्थली के छात्रावास मे रही इस कारण राखी पर घर नही जा पाती थी और अब भाई नौकरी के कारण दूसरे शहर मे रहता है । इसलिए कुछ साल छोड़ कर सदा राखी पार्सल करती आई । मैं जब पार्सल करने जाती हूँ तो रेलवे डाक विभाग के कर्मचारी आपस मे मेरे पार्सल को देख कर कहने लगते है ,क्या यह राखी का पार्सल है !तब मैं बड़ी सहजता से कहती हाँ ,और उनके आगे के सवाल भी बिन कहे समझ जाती हूँ क्योंकि आम तौर पर लोग सिर्फ लिफाफे मे राखी डालकर भेज देते है और इसी कारण से उन्हें मेरा ये एक -दो किलो का पार्सल आश्चर्यचकित कर देता है और तुरंत पूछने लगते है आखिर है क्या इसमें ?फिर न चाहते हुए भी मुझे उनके सवालों को सुलझाना पड़ता है और मैं उत्तर देती हूँ कि हमलोग रक्षाबंधन बहुत विधिवत मनाते है और ये हमारे लिए सिर्फ फर्ज नही है हमारी खुशियाँ है ,मायका का अटूट बंधन है ,हमारा भाई बेसब्री से इन्तजार करता है इस पर्व का । इस लिए हमलोग वो सारे सामान जिसकी जरूरत राखी के अवसर पर होती है भेज देते है । इस पर उन्होंने कहा कि सिर्फ राखी भेज दीजिये हल्की सी और साथ मे पैसे ,तब मैं तपाक से बोली रूपये हर कमी पूरी नही करता ,रिश्तों को जिन्दा रखने के लिए सच्चे एवं गहरे अहसास भी होने चाहिये । जो हम दे रहे है ,वो उसे पैसा न दे ,और वो सभी चुप हो गये । शायद आज के दौर मे उन्हें ये ये सब विचित्र लगा हो ।
खैर जो इस जज्बे कि क़द्र करते है वो ही इन सभी बातों को भी समझ सकते है । हमारे लिए तो जीने कि वजह है और बंधन को मजबूत बनाने का तरीका । मेरा भाई हमेशा सभी बहनों से दो दो राखियाँ बंधवाता है और तीनो बहनों कि तरफ से मैं अक्सर उसे डबल राखियाँ भेजती हूँ ,फिर भी हर बार की तरह पहले अवश्य पूछेगा दो दो राखियाँ भेजी हो न इस बार भी और मैं दिलासा देते हुए कहती हूँ ,हाँ बाबा भेज दी हूँ । राखी पाने के बाद उसकी आँखों मे जो चमक और आवाज मे ख़ुशी होती है उसे केवल महसूस किया जा सकता है बयां नही ।
पार्सल की सूचना देते समय मैंने उसे डाक घर मे कही बात बताई तब उसने कहा नही पैसे मे वो आनंद नही , और मेरी भाभी तुरंत फ़ोन लेकर बोली दीदी ये आपलोग की भेजी हुई राखियाँ तथा सारी चीजे बड़े शौक से सब को दिखाते है और बाद मे संभाल कर रख देते है । मैं बोली जानती हूँ ,क्योंकि जब हम छुट्टियों मे उसके यहाँ जाते है तब वह सहेज कर रक्खी राखियाँ दिखाता है हमें । यही वजह है कि हम इतनी लगन से मनाते है । हर रिश्ता इतना ही पावन हो यही कामना करती हूँ । आप सभी को ढेरो बधाइयाँ ,व्यस्तता के कारण बराबर नही आ पा रही ,कल मायके से लौटते ही सभी के ब्लॉग पर आती हूँ । आपका सहयोग इसी तरह मिलता रहे ,शुक्रियां ।
टिप्पणियाँ
आपकी बात से सहमत हूँ.देर से सही रक्षाबंधन की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
AAPNE BAHUT ACCHA LIKHA HAI , BADHAYI KABUL KARE..
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
वाह ज्योति जी. इस आलेख को पढ के तो निबन्ध का मज़ा मिल गया. बचपन में पहुंच गया मैं तो...तमाम त्योहारों के निबन्ध याद आ गये. बधाई