धुंध
अश्को का सैलाब
डबडबा रहा है आंखों में ,
फिर भी एक बूँद
पलको पर नही ,
निशब्द खामोशी भरी उदासी
कहने को बहुत कुछ पास में ,
परन्तु बिखरी है संशय की
धुंध भरी नमी सी ,
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति
होती है यकीन की ।
डबडबा रहा है आंखों में ,
फिर भी एक बूँद
पलको पर नही ,
निशब्द खामोशी भरी उदासी
कहने को बहुत कुछ पास में ,
परन्तु बिखरी है संशय की
धुंध भरी नमी सी ,
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति
होती है यकीन की ।
टिप्पणियाँ
फिर भी एक बूँद...पलको पर नहीं...
..........
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति...होती है यकीन की ।
वाह....भावों के अंतर्द्वंद को प्रदर्शित करती बेहतरीन रचना...
ज्योति जी,
आपकी रचनाओं में निखार के नित नए रंग नज़र आ रहे हैं...बधाई स्वीकार कीजिए.
और क्या कहूँ ....?
अभी हमें इन्हीं कठिन रास्तों से गुजरना है .....
चलती रहे .....!!