धुंध


अश्को का सैलाब

डबडबा रहा है आंखों में ,

फिर भी एक बूँद

पलको पर नही ,

निशब्द खामोशी भरी उदासी

कहने को बहुत कुछ पास में ,

परन्तु बिखरी है संशय की

धुंध भरी नमी सी ,

कितनी दुविधापूर्ण स्थिति

होती है यकीन की

टिप्पणियाँ

अश्को का सैलाब...डबडबा रहा है आंखों में ,

फिर भी एक बूँद...पलको पर नहीं...
..........
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति...होती है यकीन की ।
वाह....भावों के अंतर्द्वंद को प्रदर्शित करती बेहतरीन रचना...
ज्योति जी,
आपकी रचनाओं में निखार के नित नए रंग नज़र आ रहे हैं...बधाई स्वीकार कीजिए.
Mithilesh dubey ने कहा…
बहुत खूब ।
हरकीरत ' हीर' ने कहा…
ये अश्क ....संशय ..दुविधाए .....ही स्त्री के लिए तपस्या है .....

और क्या कहूँ ....?

अभी हमें इन्हीं कठिन रास्तों से गुजरना है .....

चलती रहे .....!!
बस संज्ञा शून्य स कर दिया है ...बहुत गहरे भाव भरे हैं ..
बहुत खूब!!!!!बहुत गहरे भाव
कभी कभी रोना तो आता है पर आंसू नहीं बहते.... बहुत अच्छी लगी ये कविता...
सुधीर राघव ने कहा…
बहुत खूब!!!!!...बधाई स्वीकार कीजिए.

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