शाख के पत्ते

हम ऐसे शाख के पत्ते है
जो देकर छाया औरो को
ख़ुद ही तपते रहते है ,
दूर दराज़ तक छाया का
कोई अंश नही ,
फिर भी ख्वाबो को बुनते है
उम्मीदों की इमारत बनाते है ,
और ज्यो ही ख्यालो से निकल कर 
हकीकत से टकराते है 
ख्वाबो की वह बुलंद इमारत
बेदर्दी से ढह जाती है ,
तब हम अपनी तकदीर को 
वही खड़े हो ......
कोसते रह जाते है ।

टिप्पणियाँ

बहुत सुन्दर लिखा है.............. मेरा मानना है सब को छाया देने वाले patte ही बने रहना चाहिए........
सुन्दरता से उतारा है मन के ज़ज्बातों को........
बहुत सुन्दर. बधाई.
ज्योति सिंह ने कहा…
नासवा जी और वंदना जी बहुत बहुत धन्यवाद जो आपको पसंद आया ..
हरकीरत ' हीर' ने कहा…
हम ऐसे शाख के पत्ते हैं
जो देकर छाया औरों को
खुद ही तपते रहते हैं

बहुत सुन्दर .......!!
ज्योति सिंह ने कहा…
हरकीरत जी आपको ब्लॉग पे देख अच्छा लगा शुक्रिया
के सी ने कहा…
शब्दों में जादू जाग रहा है
आप बुन रही हैं प्रकृति के रंग रूप शब्दों में .... वाह वाह उसने जलती हुई पेशानी पर पर हाथ रखा सा हाल है
ज्योति सिंह ने कहा…
किशोर जी कविता से ज्यादा बेहतर आपके कहे शब्द है .शुक्रिया आपका .

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