क्या पता क्या ख़बर
क्या सही ,है क्या ग़लत ,
बहती ज़िन्दगी की धारा में
राज छिपे है बहुत ,
लिए पाप -पुण्य का चक्र
झूठ -सच का व्यूह ,
थोडी महकी थोडी बहकी
कुछ सहमी कुछ गुमसुम ,
कुछ अल्हड़ कुछ मदमस्त
स्नेह-सुरा का उदगार करता स्पर्श ,
कभी दहकता हुआ मन
और बरसता कभी सावन ,
लिए उर में कभी अवसाद घनेरा
पूर्ण -अपूर्ण के छंदों पर
होता खड़ा बसेरा ।
ज़िन्दगी की इस धारा में
है कितने ही मोड़ ,
हंस- हंस कर हमें महज
करते रहना है जोड़ ,
है पता किसे ,इसके गहरे राज़
कल क्या है ,क्या होगा आज ,
भूत - वर्त्तमान - भविष्य
लिए क्या है भाग्य ,
कोई क्या जाने ?
इस ज़िन्दगी के मौलिक आधार ।
13 टिप्पणियां:
पूर्ण-अपूर्ण के छंदों पर होत खडा बसेरा..........क्या बात है!!
बहुत गहरे अर्थ लिए सुन्दर कविता
बधाई
गम्भीर चिंतन की कविता. बहुत सुन्दर
good
सच कहा कोई नहीं जानता जीवन के काल चक्र में क्या छिपा है........... मन को चूने वली रचना है
आप सभी की शुक्रगुजार हूँ ,जो आकर मेरे हौसले को बढाया ,धन्यवाद .
जीवन की यही तो सच्चाई है कि इसे हम नही जान सकते, सिवाये इसे जीने के या काटने के.
प्रस्तुति अच्छी लगी.
shukriya amitabh ji .
वाह ....!!
एक गहरी सचाई से रूबरू करती आपकी कविता भावों को छु गयी ........!!
harkirat ji ,bahut bahut shukriya .
जींदगी का मौलिक आधार तो जीना ही होता होगा, किस तरह कोई जीता है, यह उस पर निर्भर है। कविता अच्छी है। बधाई।
shukriya adwet ji, jo aap mere blog pe aaye .
मन से लिखी , दिल को छूती कवितायेँ !
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