कुछ बूंदे कुछ फुआर
तफसीर जब बेबसी का हुआ
त्यों ही मुलाकात आंसुओ ने किया ,
आगाज़ होते किस्से गमे-तफसील के साथ
पहले उसके अश्को ने गला रुंधा दिया ।
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जिसके चेहरे पे थी हँसी ,
वो भी उदासी का सबब लिए हुए ।
कौन कहता है कमबख्त ,
है गम नही सबको घेरे हुए ।
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छेड़कर ज़िक्र तो करो
रखकर दुखती - रग पर हाथ ,
जख्म उभरता नही फिर कैसे
सोये हुए दर्द के साथ ।
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उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
अब तो इस क़ैद से रिहा दे ।
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तलाशे कहाँ सुकून ऐसी जगह बता दे ,
बेवज़ह दर्द बढ़ाने की अब जगह न दे ।
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ये चंद शेर अपने दोस्त की गुजारिश पे लिखी हूँ ,
ब्लॉग पे इसे नही लिखती ।
ये सब पुरानी रचना है जिसे सामने नही लाती ।
त्यों ही मुलाकात आंसुओ ने किया ,
आगाज़ होते किस्से गमे-तफसील के साथ
पहले उसके अश्को ने गला रुंधा दिया ।
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जिसके चेहरे पे थी हँसी ,
वो भी उदासी का सबब लिए हुए ।
कौन कहता है कमबख्त ,
है गम नही सबको घेरे हुए ।
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छेड़कर ज़िक्र तो करो
रखकर दुखती - रग पर हाथ ,
जख्म उभरता नही फिर कैसे
सोये हुए दर्द के साथ ।
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उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
अब तो इस क़ैद से रिहा दे ।
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तलाशे कहाँ सुकून ऐसी जगह बता दे ,
बेवज़ह दर्द बढ़ाने की अब जगह न दे ।
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ये चंद शेर अपने दोस्त की गुजारिश पे लिखी हूँ ,
ब्लॉग पे इसे नही लिखती ।
ये सब पुरानी रचना है जिसे सामने नही लाती ।
टिप्पणियाँ
अब तो इस क़ैद से रिहा दे
खूबसूरत है सब शेर ............ लाजवाब ........... और आप ऐसा न सोचें की पुरानी चीज शेयर नहीं करनी चाहिए .......... इतना लाजवाब लिखा हुवा जरूर सबके साथ शेयर करना चाहिए........ हम को भी ख़ुशी होगी इस बात की
बधाई।
बेवज़ह दर्द बढ़ाने की अब जगह न दे ।
ak se bdhkar ak sher
hai .old is gold .jab ham purani yado ka jikr karte hai to apni rchnao ka kyo nhi ?
jrur likhiye .aao thoda rumani ho jaye ........
tppni ke liye dhnywad.
abhar
यह फुहारें तो मन भिगो गयीं ,
दर्द कहाँ -कहाँ है , ये न पूछ
ये दर्द नहीं कहाँ है पूछ
अर्थ यथार्थ आगमन का आभारी हूँ , बिजली गयी बातें फिर कभी
अब तो इस क़ैद से रिहा दे"
बहुत उम्दा शेर....आपने अपने मित्र की बात मान कर बहुत अच्छा किया..बहुत बहुत बधाई....
अब तो इस क़ैद से रिहा दे
sahi hai..
bilkul sahi hai..