याद-ऐ-तन्हाई

दराजे-तन्हाई , दार-मदार हो जिसके

अश्को ने सदा साथ निभाया ।

करवटे दर- गुज़र करती रही

आँखों में भरे नींदों को ,

तन्हाई का ऐसा आलम

कब रात गई कब सहर हुई ।

दर्द भी हल दर्क* न सका , और

जागते को सुबह भी जगाने आई ।

(दर्क=पाना.)

टिप्पणियाँ

सच है...........tanhai में aansoo ही साथ देते हैं......... lajawaab rachna
vikram7 ने कहा…
आँखों में भरे नींदों को ,

तन्हाई का ऐसा आलम

कब रात गई कब सहर हुई ।
बहुत खूब
ज्योति सिंह ने कहा…
shukriya bahut bahut digambar ji,vikram ji.
दरीचा बेसदा कोई नहीं था,
अगर्चे बोलता कोई नहीं था.
इतनी ही गहरी है, आपकी गज़ल की तन्हाई भी. बहुत सुन्दर.
ARUNA ने कहा…
bahut umdaa Jyoti ji!
शोभना चौरे ने कहा…
खुबसूरत शेर .

तन्हाई का ऐसा आलम
कब रात गई कब सहर हुई ।

bdhai
अश्को ने सदा साथ निभाया ।

क्षमा कीजिये ज्योति जी ,मैं आप से इतिफाक नहीं रखता ,मेरा तो कहना हैं ---------

याराँ वो तो बेवफा हुआ,

गम में जो आँसू ,

आँखों से जुदा हुआ,

पूरी यहाँ उपलब्ध है


आंसू और तनहाई
जागते को सुबह भी जगाने आई
waah waah..
bahut khoob..
kya baat hai, zabardat...
ज्योति सिंह ने कहा…
aap aai baharo ki tarah ,wafa ki ye ada bhi khoob rahi ,is niraale andaaz pe to hum fida ho gaye .

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कुछ दिल ने कहा

अहसास.......

एकता.....