होता नही बयां ,सब कुछ धुआं -धुआं

तुम आते हो एक धुन्ध की तरह

ये नज़र देख भी नही पाती ,

और तुम ओझल हो जाते

एक अस्पष्टता , एक दूरी का

आभास है इस क्षितिज में ,

और साथ ही ऐसा लगता है

मानो आहिस्ता -आहिस्ता

दूर खीँच रहा है ,एक दूजे से

इस अलगाव के संकेत में

जैसे कोई अंत नज़र रहा ,

और सारा अफसाना

पानी के साथ बहा जा रहा

खामोश सा यह अफ़साना

आपस में जो कहा -सुना ,

आज अनसुना ,अनकहा हो

क्यो मिटने है लगा

क्या साथ था इतना ?

या नाराज़गी है किसी शै की ,

जो धुंधली तस्वीर सी

हुए जाते हो

करने लगा संकेत क्या ये बयाँ

सब कुछ हो रहा यहाँ

क्यो धुआं -धुआं

जाने किसे क्या मंजूर है ,

हालात क्यो इतने मजबूर है

जहाँ खतम सा कुछ नही

फिर भी अंत दिख रहा ,

बात आपस में चलती नही

फिर भी फ़साना लिख रहा

कुछ बात है जरूर

ये किसे पता है ,

गुमां इस बात का

शायद जरा -जरा है

टिप्पणियाँ

कुछ बात है जरूर
ये किसे पता है ,
गुमां इस बात का
शायद जरा -जरा है ।
क्या बात है ज्योति जी. बधाई.
एक अस्पष्टता , एक दूरी का
आभास है इस क्षितिज में ,
और साथ ही ऐसा लगता है
मानो आहिस्ता -आहिस्ता
दूर खीँच रहा है ,एक दूजे से

सुन्दर रचना है ..............कभी कभी yaaden dhundhli होती जाती हैं............ yakbayak.... dhuaan हो जाती हैं .......लाजवाब
शोभना चौरे ने कहा…
HAVNAO STEEK CHITRAN.
ACHHI KAVITA .
बेनामी ने कहा…
वहाँ ख़त्म सा कुछ ना होगा,
जो ना देखोगे अंत सदा,
हो धुआँ-धुआँ,
हो ज़रा-ज़रा,
पास रहेगा वो सदा,
जो दर्द भी मिले,
मीठा-मीठा,
आभास भी यही
हो एक धुन्ध की तरह
ये नज़र देख भी नही पाती ,

एक अस्पष्टता , एक दूरी का
आभास है इस क्षितिज में ,

खामोश सा यह अफ़साना
आपस में जो कहा -सुना ,
आज अनसुना ,अनकहा हो
क्यो मिटने है लगा ।



करने लगा संकेत क्या ये बयाँ
सब कुछ हो रहा यहाँ
क्यो धुआं -धुआं ।

कुछ बात है जरूर
ये किसे पता है ,
गुमां इस बात का
शायद जरा -जरा है ।


ज्योति जी क्षमा चाहता हूँ , इसबार कोई सीधा कमेन्ट तो नहीं कर पाउँगा क्यों की मैं अभी तक इस नज्म के भावों में पूर्ण रूप से नहीं उतर पाया हूँ या यूँ भी कह सकती हैं कि भावों को पूर्णतया अपने अन्दर नहीं उतार पाया हूँ ,फिर भी कई दोहरावों के पश्चात् जिन भावों से कुच्छ स्पंदन अनुभव हुए उन्हें कॉपी - पेस्ट कर दिया पर वे अंतरिम है समग्र नहीं , लगता है कई बार आना और पढ़ना पड़ेगा |

इस बेबाकी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
ARUNA ने कहा…
ज्योति जी, बहूत ही अच्छी कविता है ये....अच्छी तरह से भावनाओं का व्यक्त किया है आपने!!
कुछ बात है जरूर
ये किसे पता है ,
गुमां इस बात का
शायद जरा -जरा है ।

बहुत खूब लिखा है आपने...
मैं अपनी चार पंक्तियाँ कहना चाहूंगी..

नजदीकियों के भरम में क्यों जी रहे हो
बहुत पहले से तुमसे दूर जाने लगे हैं
शौक़ बहुत था, तेरे पहलू में आते,
तेरे साए से भी अब, घबराने लगे हैं
Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…
भावों से भरी अभिव्यक्ति का तहे दिल से स्वागत है.

बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
के सी ने कहा…
वंदना और अदा ने सही लिखा है वे पंक्तियाँ मुझे भी पसंद आई !
ज्योति सिंह ने कहा…
sabhi logo ka tahe dil se shukriya mujhe sarahane ke liye .
ज्योति सिंह ने कहा…
ये रचना ,कविता की मर्ज़ी से लिखी गयी ,जब नयी रचना डालने बैठी तो बारबार यही कविता सामने आने लगी ,जबकि दोस्त को पढाते वक़्त मैं कह चुकी थी इसे नहीं लिखूंगी ,मगर जिस तरह से सामने आया खुदा की मर्ज़ी समझ लिखना ही पड़ा , यह एक सच्चाई है जिससे आज भी जूझ रही ,ये ऐसा रिश्ता है जहाँ मेरी मर्ज़ी भी काम नहीं करती ,बहुत ही अद्भुत .
अदा जी की बाते दिल से होकर गुजर गयी ,उनकी ये अदा छू गयी मन को .
ज्योति जी,
आपने इतना सम्मान दिया, मैं तो बस झुकी जा रही हूँ...
Poonam Agrawal ने कहा…
Jyotiji
Aapki bhavnao ko vyakt kerne ki kala ka javaab nahi.....Keep on writing. badhai.
जाने किसे क्या मंजूर है ,
हालात क्यो इतने मजबूर है ।
जहाँ खतम सा कुछ नही
फिर भी अंत दिख रहा ,
बात आपस में चलती नही
फिर भी फ़साना लिख रहा ।
behatreen
vikram7 ने कहा…
कुछ बात है जरूर
ये किसे पता है ,
गुमां इस बात का
शायद जरा -जरा है
अति सुन्दर
ज्योति सिंह ने कहा…
poonam ji ,vikram ji ,amitabh ji ,aap sabhi ka shukriya .

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