रुस्वाइयां
फासले बेरुखी के इतने लंबे क्यो हुए ,
हम अपनों के होकर भी अपने नही हुए ।
नाराजगी बरसो के दर- मियान भी जारी रही ,
वेवफाई हमने की नही पर वेवफाई हो गई ।
जिस सज़ा के हक़दार शायद हम न थे कभी ,
मामूली सी खता हमारी उम्र कैद क्यो बन गई ।
बात हमारी ही हमी से थी जुदा ,
सामने होकर भी ,पर्दे में रखी गई ।
चंद खुशियों के फैसले पर खतावार हो गए ,
बेगुनाह को इस गुनाह की सज़ा हो गई ।
हम अपनों के होकर भी अपने नही हुए ।
नाराजगी बरसो के दर- मियान भी जारी रही ,
वेवफाई हमने की नही पर वेवफाई हो गई ।
जिस सज़ा के हक़दार शायद हम न थे कभी ,
मामूली सी खता हमारी उम्र कैद क्यो बन गई ।
बात हमारी ही हमी से थी जुदा ,
सामने होकर भी ,पर्दे में रखी गई ।
चंद खुशियों के फैसले पर खतावार हो गए ,
बेगुनाह को इस गुनाह की सज़ा हो गई ।
टिप्पणियाँ
सामने होकर भी ,पर्दे में रह गई ।
चंद खुशियों के फैसले से खतावर हो गए ,
बेगुनाह को इस गुनाह की सज़ा हो गई ।
ज्योति जी ,
मैं आप से ही पूछ रहा हूँ क्या इस नज्म की तारीफ में कुछ कहना ज़ुरूरी है , वैसे अंत की लाईने
चुनी हैं |
अए दोस्त मत कुरेद जख्मों को अपने इतना भरने दे इन्हें ,
नासूर न बना ऐसा कि टपकता रहे लहू तेरे मरने के बाद भी |
सब जगह नया हौसला है नयी सी बातें हैं आपकी
बेगुनाह को इस गुनाह की सज़ा हो गई
वाह कितना हसीन लिखा है........ लाजवाब मज़ा आ गया