ख्वाहिशों .........

आज सोचा चलो अपनी


ख्वाहिशो को रास्ता दूँ ,


राहो से पत्थर हटाकर


उसे अपनी मंजिल छूने दूँ ,


मगर कुछ ही दूर पर्वत खड़ा था


अपनी जिद्द लिए अडा था ,


उसका दिल कहाँ पिघलता


मुझ जैसा इंसान नही था


स्वप्न उसकी निष्ठुरता पर ,


खिलखिलाकर हँस पड़े


हो बेजान , अहसास क्या समझोगे


हद क्या है जूनून की ,कैसे जानोगे ?


आज नही सही कल पार जायेंगे


उड़ान भर ;मंजिल छू जायेंगे


टिप्पणियाँ

के सी ने कहा…
ज्योति जी बढिया है भाव बाँध के रखते हैं
BrijmohanShrivastava ने कहा…
आज नहीं तो कल ,मंजिल छूने की तमन्ना ,एक आशावादी द्रष्टिकोण की रचना | पर्वत का दिल क्यों पिघलता वह इंसान नहीं था की जगह यह कहना कि वह मुझ जैसा इंसान नहीं था ,दर्शित करता है कि रचनाकार भावुक ह्रदय और दूसरों को मदद करने वाला ह्रदय रखता है |राहों से पत्थर हटा कर मंजिल chhoone की ख्वाहिश रचनाकार की सक्रियता ,कुछ कर गुजरने की बलवती इच्छा का द्योतक है ,रचना सरल ,भावः प्रधान है शब्दों का चयन रचना के अनुरूप
एक बार फिर आपने हमें होसलें से लबरेज़ कर दिया ....................ख्वाइशें ..................होसलों की ज़मीन तैयार करती हैं .....................और आपने हमें रास्ता तैयार कर कर दे दिया ................................बहुत खूब ..............
ज्योति सिंह ने कहा…
bahut bahut dhanyawaad ,kishore ji ,brijmohan ji avam aditya ji .itne khoobsurat tippani ke liye aabhaari hoon .
सच है जुनून की हद हर कोई नही जान सकता. सुन्दर रचना.
ज्योति जी,

जुनून होता ही ऐसा है कि कोई पर्वत रोक नही सकता यदि हौंसले ने पर लगा लिये हो संकल्प के तो।

पॉजिटिव्ह सोच के साथ एक अच्ची कविता।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी
Bahut khoobsurat aur ashaavadi udaan hai aapki kavita mein .
ज्योति सिंह ने कहा…
vandana ji ,anaam ji ,mukesh ji shukriya .
SACH HAI KHWAAHISHON MEIN JANOON HO TO HAR RAASTA, HAR ADHCHAN PAAR HO JAATI HAI .... ACHEE ABHIVYAKTI HAI AAPKI ....
Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…
हो बेजान, अहसास क्या समझोगे
हद क्या है जुनून की, कैसे समझोगे.........

बहुत खूब...........ज्योति जी कमल की पंक्तियाँ हैं ये......

हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
jyoti ji,
sabse pahle aapka hriday se swaagat hai. aap ek maheene ke awakaash ke baad ayi hain.
aapki kavita aasha se oat-prot lahi. bahut hi utsaah vardhak..urja se paripoorn..
dhnyawaad.
शोभना चौरे ने कहा…
हो बेजान , अहसास क्या समझोगे

kadam kadm par aise log mil jayege
bahut khubsurat ahsas .
abhar
Apanatva ने कहा…
bahut hee sunder rachanaa hai .

utsaah hai.

to rah hai .
Urmi ने कहा…
गहरे भाव के साथ बहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने! नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
shama ने कहा…
आपने तो blog पे
http://fiberart-thelightbythelonelypath.blogspot.com

तारीफों के पुल बाँध दिए !

आपकी रचनाके लिए कहूँगी ...कितना सही है ...पहाड़ नही पिघलते , कुदरतन नही पिघलते......उन्हें पार करने के लिए गरुड़ भरारी चाहिए ...आप मे वो दम है ...शायद मेरे पर छंट गए हैं ..

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Amit K Sagar ने कहा…
काश...थोडा सा और विस्तार होता...बहुत अच्छा लिखा. जारी रहें.
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Till 30-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
ज्योति सिंह ने कहा…
abhi nav durga hai ,aaj main maa sharda ke darshan karne maihar gayi thi ,gajab ki bhid rahi ,subhah se shaam ho gayi wapas aane me ,aur aakar aap sabhi ko blog par dekh khushi hui ,aap logo ka tahe dil se shukriyan .
navraatri ki haardik shubhkaamnaye .
Yogesh Verma Swapn ने कहा…
bahut khoob jyoti ji,

aaj nahin sahi kal paar.............

sunder hausla deti abhivyakti.badhaai.
Harshvardhan ने कहा…
sundar rachna lagi padvane ka shukria

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