ख्वाहिशों .........
आज सोचा चलो अपनी
ख्वाहिशो को रास्ता दूँ ,
राहो से पत्थर हटाकर
उसे अपनी मंजिल छूने दूँ ,
मगर कुछ ही दूर पर्वत खड़ा था
अपनी जिद्द लिए अडा था ,
उसका दिल कहाँ पिघलता
मुझ जैसा इंसान नही था ।
स्वप्न उसकी निष्ठुरता पर ,
खिलखिलाकर हँस पड़े ।
हो बेजान , अहसास क्या समझोगे
हद क्या है जूनून की ,कैसे जानोगे ?
आज नही सही कल पार जायेंगे
उड़ान भर ;मंजिल छू जायेंगे ।
टिप्पणियाँ
जुनून होता ही ऐसा है कि कोई पर्वत रोक नही सकता यदि हौंसले ने पर लगा लिये हो संकल्प के तो।
पॉजिटिव्ह सोच के साथ एक अच्ची कविता।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
हद क्या है जुनून की, कैसे समझोगे.........
बहुत खूब...........ज्योति जी कमल की पंक्तियाँ हैं ये......
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
sabse pahle aapka hriday se swaagat hai. aap ek maheene ke awakaash ke baad ayi hain.
aapki kavita aasha se oat-prot lahi. bahut hi utsaah vardhak..urja se paripoorn..
dhnyawaad.
kadam kadm par aise log mil jayege
bahut khubsurat ahsas .
abhar
utsaah hai.
to rah hai .
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
http://fiberart-thelightbythelonelypath.blogspot.com
तारीफों के पुल बाँध दिए !
आपकी रचनाके लिए कहूँगी ...कितना सही है ...पहाड़ नही पिघलते , कुदरतन नही पिघलते......उन्हें पार करने के लिए गरुड़ भरारी चाहिए ...आप मे वो दम है ...शायद मेरे पर छंट गए हैं ..
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
---
Till 30-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
navraatri ki haardik shubhkaamnaye .
aaj nahin sahi kal paar.............
sunder hausla deti abhivyakti.badhaai.