उदीप्त
घटता नही क्रम तम का
क्यो होता नही सवेरा ,
निशा सदा तेरा ही आमंत्रण
क्यो स्वीकारे मन मेरा ।
उर में बंदी बनी रही सब
आशाएं -इच्छाए हमारी ।
कुसुम की मुस्कुराहट पे क्यो
लगा शूलों का पहरा ।
मेरी पीड़ा की ज्वालाये
ठुकराती रजनी का आमंत्रण ,
सूरज के संग बांहे थामें
मुक्त हुई अब छोड़ अँधेरा ।
टिप्पणियाँ
ठुकराती रजनी का आमंत्रण ,
सूरज के संग बांहे थामें
मुक्त हुई अब छोड़ अँधेरा
वाह..अति सुन्दर
wah bahut khoob, khoobsurat abhivyakti jyoti ji, badhai.
सूरज के संग बांहे थामें
मुक्त हुई अब छोड़ अँधेरा
ठुकराती रजनी का आमंत्रण ,
सूरज के संग बांहे थामें
मुक्त हुई अब छोड़ अँधेरा ।
क्या बात है..जब ज्वालाभूत हो गयी है पीड़ा तो रात के आवरण मे कैसे ढकी रहेगी..सूरज को तो आना ही होगा.
अच्छी लगी.
क्या ब्लागिंग को बचाने के लिए कानून का सहारा लेना होगा?
क्यो स्वीकारे मन मेरा ।
उर में बंदी बनी रही सब
आशाएं -इच्छाए हमारी ....
Sach kaha aaj jaagriti ka samay hai .... koi bhi aamantran jo anukool na ho ... nahi swikaar karna chahiye .. sundar likha hai ...
बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं :-
मेरी पीड़ा की ज्वालाये
ठुकराती रजनी का आमंत्रण ,
सूरज के संग बांहे थामें
मुक्त हुई अब छोड़ अँधेरा ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
ठुकराती रजनी का आमंत्रण
सूरज के संग बाहें थामे
मुक्त हुई अब छोड़ अँधेरा
ज्योति जी लय बद्ध उजाले का सूरज थमती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है इस रचना में .....बधाई .....!!
पीड़ा में भी अगर अंधेरा न जीत पाए
तो प्रकाश की किरण प्रवेश कर चुकी
और
मुक्त हुई अब छोड़ अँधेरा
http://gunjanugunj.blogspot.com