आपसी द्वेष
रिश्तों के आपसी द्वेष ,
परिवार का
समीकरण ही बदल देते है ,
घर के क्लेश से दीवार
चीख उठती है ,
नफरत इर्ष्या
दीमक की भांति ,
मन को खोखला करती है ,
ज़िन्दगी हर लम्हों के साथ
क़यामत का इन्तजार
करती कटती है ।
और विश्वास चिथड़े से
लिपट सिसकियाँ भरती है ।
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इस रचना की और पंक्तियाँ है मगर लम्बी होने की वज़ह से नही डाली हूँ .
परिवार का
समीकरण ही बदल देते है ,
घर के क्लेश से दीवार
चीख उठती है ,
नफरत इर्ष्या
दीमक की भांति ,
मन को खोखला करती है ,
ज़िन्दगी हर लम्हों के साथ
क़यामत का इन्तजार
करती कटती है ।
और विश्वास चिथड़े से
लिपट सिसकियाँ भरती है ।
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इस रचना की और पंक्तियाँ है मगर लम्बी होने की वज़ह से नही डाली हूँ .
टिप्पणियाँ
परिवार का
समीकरण ही बदल देते है ,
Neeraj
करती कटती है ।
और विश्वास चिथड़े से
लिपट सिसकियाँ भरती है ।
आप ने एक बिखरते घर एक बिखरते देश का चित्र खींचा अपनी इस कविता मै. धन्यवाद