दर्द
रास्ते -रास्ते बिखरे दर्द ,क्यो
हमसफ़र बन गया हमारा ,
क्योकर हम खामोश है
कांटो से लिपट कर भी ,
क्या कहे कैसे कहे
ओह एक उफ़ भी नही ,
ये उलझन सुलझे कैसे
जाल बुनता जा रहा रोज ही ,
गहरी टीस उठती है मन में
मगर लिपटाये रह गई चुप्पी ,
न गिला कोई न शिकवा
अफ़सोस में रह गए सभी ।
बदल गये कितनी करवटे
उठ गयी कितनी सिलवटे ,
जाने क्या मजबूरी रही
इस धुंध से निकले नही ,
उम्र भर एक आस पर
कांटो से समझौता रहा ,
दामन सारे छिल गये
पाँव में छाले पड़ गये ,
तहजीब को हम साथ लिए
उम्र अपनी पार कर गये ,
दर्द के हमसफ़र बनकर
वफ़ा के अंदाज में जिए ,
ज़िन्दगी तेरे साथ चलने के
हुए अंदाज़ कुछ निराले ही ,
टूटते तो रहे निरंतर ही
मगर बिखरे आज तक नही ।
टिप्पणियाँ
हुए अंदाज़ कुछ निराले ही ,
टूटते तो रहे निरंतर ही
मगर बिखरे आज तक नही ।
बहुत सुंदर रचना, आप की रचन पढ कर बहुत कुछ याद आ गया.
धन्यवाद
उम्र अपनी पार कर गये ,
दर्द के हमसफ़र बनकर
वफ़ा के अंदाज में जिए ,
दर्द और जिंदगी का चौली - दामन का साथ है पुराना
जिंदगी इम्तिहान लेती है,वफा को दर्द देता है जमाना
सुंदर अभिव्यक्ति
उठ गयी कितनी सिलवटे ,
जाने क्या मजबूरी रही
इस धुंध से निकले नही .....
कभी कभी दर्द में डूब कर इंसान सब कुछ सहता रहता है ............ दर्द भरी रचना ............
क्या बात है !
पूरी कविता से दर्द रिस रहा है !
क्या बात है !
पूरी कविता से दर्द रिस रहा है !
बहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
हुए अंदाज़ कुछ निराले ही ,
टूटते तो रहे निरंतर ही
मगर बिखरे आज तक नही ।
vah jyotiji
bahut sundar bhavna
कांटो से समझौता रहा ,
दामन सारे छिल गये
kitu ab jmana badl rha hai kanto se smjhota karna theek nahi |
achhi imandar rachna
हुए अंदाज़ कुछ निराले ही ,
टूटते तो रहे निरंतर ही
मगर बिखरे आज तक नही ।
इस रचना को पढ़ने के बाद लगा कि "हौसले" किस चिडिया का नाम है
जबरदस्त पंक्तियाँ..................
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अति सुन्दर प्रस्तुति, गहरे सार्थक मनोभावों का वर्णन हमेशा की तरह एक नए अंदाज़ में
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com