रिश्तों के आपसी द्वेष ,
परिवार का
समीकरण ही बदल देते है ,
घर के क्लेश से दीवार
चीख उठती है ,
नफरत इर्ष्या
दीमक की भांति ,
मन को खोखला करती है ,
ज़िन्दगी हर लम्हों के साथ
क़यामत का इन्तजार
करती कटती है ।
और विश्वास चिथड़े से
लिपट सिसकियाँ भरती है ।
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इस रचना की और पंक्तियाँ है मगर लम्बी होने की वज़ह से नही डाली हूँ .
7 टिप्पणियां:
पूरी कविता पढ़वा ना। वैसे बात तो बिल्कुल सही है रिश्तों के आपसी द्वेष ,
परिवार का
समीकरण ही बदल देते है ,
Sahi kaha aapne...Jis ghar men pyar nahin wo ghar ghar nahin...saraay hai...
Neeraj
shukriyaan manoj ji niraj ji
क़यामत का इन्तजार
करती कटती है ।
और विश्वास चिथड़े से
लिपट सिसकियाँ भरती है ।
आप ने एक बिखरते घर एक बिखरते देश का चित्र खींचा अपनी इस कविता मै. धन्यवाद
itni panktian hi bahut jaandaar hain.sahi likha hai.
tanav poorn rishto ka badiya chitran kiya aapane. Pooree panktiya likhe isee aagrah ke sath
shukriyaan ,aap sabhi ki aabhaari hoon .
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