गुरुवार, 5 नवंबर 2009

कथा -सार

कितने सुलझे

फिर भी उलझे ,

जीवन के पन्नो में

शब्दों जैसे बिखरे

जोड़ रहे जज्बातों को

तोड़ रहे संवेदनाएं ,

अपनी कथा का सार

हम ही नही खोज पाये

पहले पृष्ठ की भूमिका में

बंधे हुए है , अब भी ,

अंत का हल लिए हुए

आधे में है अटके

और तलाश में भटक रहे

अंत भला हो जाये ,

लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में

यह कथा मोड़ पे लाये

16 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कभी कभी तो पूरी जिंदगी बीत जाती है जीवन के पन्ने नहीं पढ़े जाते ........ बहुत ही गहरी सोच है ...

kshama ने कहा…

क्या तो जज़्बात क्या तो संवेदनाये, अभिव्यक्ति असीम सुन्दर असीम सुन्दर है..उलझे होनेग कभी आप लेकिन रचना बेहद सुन्दर है..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कहते भी हैं अंत भला तो सब भला.....पर भला हो तो सही

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

naiya bhi kinare lagegi, wo kya kahte hain ek filmi dialogue hai na..................LAGE RAHO MUNNA BHAI............BAHUT UMDA RACHNA JYOTI JI, BADHAAI.

Apanatva ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Apanatva ने कहा…

jeevan kee jatilata aur manchaha mod dene kee bhavana bharee kavita . gambheer rachana .

राज भाटिय़ा ने कहा…

जिंदगी !! हम सब की जिन्दगी बस एक उलझे हुये धागे के समान है कभी एक सिरा मिला तो दुसरी जगह से उलझ गया.... लेकिन हमे फ़िर भी कोशिश करनी चाहिये आखरी सांस तक.... कभी भी गांठे भी पड जाती है.
बहुत सुंदर रचना लिखि आप ने धन्यवाद

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

jyoti ji namaskar,pahlibaar aapke blog par hoon.ab to aati rahoongi aap ko pareshaan karne ke liye,kavita par koi tippani karne layaq shayad nahin hoon.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

अंत भला हो जाये ,
लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में
यह कथा मोड़ पे लाये .

bahut hi gahri soch ke saath ek behtareen rachna.......

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

अपनी कथा का सार
हम ही नही खोज पाये ।
पहले पृष्ठ की भूमिका में
बंधे हुए है , अब भी ,
बहुत सुन्दर.

ज्योति सिंह ने कहा…

digamber ji,kshama ji.rashmi ji,yogesh ji ,apanatva ji ,raj ji,ismat ji ,mahfooj ali ji avam vandana ji aap sabhi ki tippani pakar dhanya hui main ,iskeliye tahe dil se aabhari hoon .bahut bahut shukriya .

रंजू भाटिया ने कहा…

अपनी कथा का सार
हम ही नही खोज पाये ।

बहुत सही सुन्दर सार्थक रचना लिखी है आपने शुक्रिया

renu ahuja ने कहा…

ज्योती जी,
आपकी बात है सही,
ज़िन्दगी वो किताब है, जो ना तो पूरी ही लिखी गई और ना पूरी तरह से समझी ही गई....चल रहा है सिलसिला और चलता रहेगा...
ग़ालिब साहब ने भी फ़रमाया था- ज़िदंगी बीत गई जब जीने का अंदाज़ आया...!!!!
आपने कहा- लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में
यह कथा मोड़ पे लाये ....!!!
ये लगे रहने की कला ही है जो ज़िन्दगी को जीने लायक रखती है, और आपकी यही सोच आपकी रचना को सशक्त बनाती है!
-रेणु

ज्योति सिंह ने कहा…

aap sabhi logo ka tahe dil se shukriyaan .jo aakar mere hausale ko badhaya .

shobhana ने कहा…

ant kaha kisi ko malum hai?
achhi abhvykti

Urmi ने कहा…

वाह ज्योति जी अद्भुत रचना! बहुत ही गहरी सोच के साथ आपने ये उम्दा रचना लिखा है जो मुझे बेहद पसंद आया!