है , तुम्हारे यकीं से
मेरा विश्वास जुड़ा
तुम्हारी अदा है
सबसे जुदा ,
चाहूँ भी कुछ
छिपाना तुमसे
छिपाना मुश्किल है जरा ,
न चाहने से भी हमारे
कुछ होगा भी कहाँ ,
इस पाक रिश्तें का साथ
दे रहा हो जब ख़ुद खुदा ।
ये ख्याल लिए
भीनी सी हँसी
बिखेर देती है ,जुबां ।
13 टिप्पणियां:
bahut sunder rachana lagee aur kuch hatke bhee .
वाह अत्यन्त सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! आपकी हर एक रचनाएँ मुझे बेहद पसंद है!
अच्छी रचना। बधाई।
is pak rishte ka saath............bikher deti hai juban.
bahut khoob, sunder abhivyakti.
इस बार सहज और सुंदर कविता... बधाई !
आपके एहसास बड़े कोमल , नाज़ुक से लगते हैं
इस पाक रिश्तें का साथ
दे रहा हो जब ख़ुद खुदा ।
मन को छू गयी ये पंक्ति
बधाई
सरलता से कही गई अपनी बात. सुन्दर.
बहुत ही सहज और सुन्दर कविता लिखी है आपने
ये ख्याल लिए
भीनी सी हँसी
बिखेर देती है ,जुबां ।
क्या बात है बहुत अच्छी रचना
बहुत खूब । विश्वास से यकीं का जुडा होना बेहद जरूरी है ।
जब अंतर्मन मान रहा है तो फिर काहे की फ़िक्र ....... लाजवाब रचना है .....
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
एक टिप्पणी भेजें