आज चाँद
है कुछ
नरम -गरम ,
और कर रहा
शायद
वनवास में भ्रमण ,
बदरी के ओट में भी
नहीं छिपा हुआ ,
देखता नहीं तो
जरूर दर्पण ,
चांदनी भी आज
जला रही ,
है जरूर बैठा
किसी कोप भवन ,
जो निकले मिजाज
बदलकर बाहर ,
और चेहरे पर
बिखरी हो मुस्कान ,
कह देना तब
उसे कही ,
यारो मेरा
दुआ सलाम ।
12 टिप्पणियां:
Bahut achee poem itane din mehmano ko le aap aatithy kee oot me vyst thee chand ko naraj to hona hee tha..........:)
achchi hai jyoti ji, dua salaam.
सुन्दर कविता. बधाई.
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
चांद का इस रूप भी । अच्छी कविता ।
Bahut sundar,saral rachana! Chand ka kopbhavan me baithna...kya khayal hai!
khoobsurat rachna
badhayi apko
सुन्दर रचना है।बधाई।
चाँद को ढूँढना और उसे खोज निकालना अच्छा लगा
मोहक रचना है ... चंदा से मनुहार अच्छी लगी .... .
आपको महा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई .......
aap sabhi ko maha shivraatri ki badhai aur tahe dil se shukriyan bhi ,aakar hausala badhayaa
ज्योति सिंह जी...रचना के माध्यम से ब्लॉग की एहमियत बयां कर दी...जो सच ही है...अच्छी रचना.
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