माँ ..... ........
एक वृक्ष की तरह
अटल ,स्थिर ,शांत
धीर -गंभीर सी ,
ये माँ
अपने बच्चो को
सदा फल वो
छाया देती ही रही ,
इशारों में ही हर जरूरत ,
समझ कर पूरी
करती रही ।
बिना कहे दर्द सभी
भांप कर ,
एक मरहम बनकर
चोंट हमारी
मिटाती रही ।
खुद मुरझा कर
हमारे अरमान सींचती रही ।
इतनी सच्ची ' माँ',
अपने सिवा सबका
ख्याल रखने वाली ।
ऐसी माँ की
क्या इच्छा है ?
कभी जानने की भी
हमने कोशिश की ।
मन में है कई
बाते उसकी ,
कभी पूछो तो
आकाश बन जाएगा ।
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जिसने जिंदगी के साथ -साथ
जीने का तजुर्बा भी दिया ,
उसके अहसास ,जज्बात को,
समझने की फुर्सत, हमें नही ।
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माँ तुम्हे शत -शत नमन
टिप्पणियाँ
Kuchh der baad unka palatke phone aya:" Tune mujhe khaas phone karke bataya...mujhe behad achha laga.."
Maa ke runse mai kabhi mukt hona bhi nahi chahti..lekin kabhi kabhar unse kah to sakti hun,ki wah mere liye kitni ahmiyat rakhti hain..
बहुत खूब ......!!
जिसने जिंदगी के साथ -साथ
जीने का तजुर्बा भी दिया ,
उसके अहसास ,जज्बात को,
समझने की फुर्सत, हमें नही ।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता
बहुत सुन्दर रचना.
ma ise rishte ko naman...........
ye bhee ittefak hee hai ki mai bhee unhee dino bahar ja rahee hoo vapasee mahine ke aakhir me hee hogee.
happy journey......
is prernadaayi kavita ke liye aapka aabhaar..
dhnywaad..
माँ की ममता ,उसका समर्पण अद्भुत है..अतुलनीय !
'माँ तुम्हे शत -शत नमन'