धीरे - धीरे यह अहसास हो रहा है ,
वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है।
कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़ ,
आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है।
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इन्तहां हो रही है खामोशी की ,
वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं।
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जिंदगी है दोस्त हमारी ,
कभी इससे दुश्मनी ,
कभी है इससे यारी।
रूठने - मनाने के सिलसिले में ,
हो गई कहीं और प्यारी ।
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इस इज़हार में इकरार
नज़रंदाज़ सा है कहीं ,
थामते रह गए ज़रूरत को ,
चाहत का नामोनिशान नहीं।
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ये बहुत पुरानी रचना है किसी के कहने पर फिर से पोस्ट कर रही हूँ ।
टिप्पणियाँ
आँखों-आँखों में कटती है ,
रात के बाद सुबह आती है।
नींद को तलाशते ,
आँखों में सुबह होती है ।
धन्यवाद
अच्छे हैं मन के ये उद्दगार उदगारनिरुत्तर ही कर दिया
यही सवाल है ...और जवाब सुबह तक बस ढूंढते हैं !
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'पाखी की दुनिया' में आज मेरी ड्राइंग देखें...