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फकीर

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ये रास्ते है अदब के कश्ती मोड़ लो , माझी किसी और साहिल पे चलो । हम है नही खुदा न है खास ही , राहे - तलब अपनी कुछ है और ही । नाराजगी का यहाँ सामान नही बनना , वेवजह खुद को रुसवा नही करना । बे अदब से गर्मी माहौल में बढ़ जायेगी , कारण तकलीफ की हमसे जुड़ जायेगी । हमें हजम नही होती इतनी अदब अदायगी , चलते है साथ लिए सदा सच्चाई - सादगी । फितरत हमें खुदा ने बख्शी है फकीर की , ले चलो मोड़ कर मुझे अपनी राह ही ।

धुंध

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अश्को का सैलाब डबडबा रहा है आंखों में , फिर भी एक बूँद पलको पर नही , निशब्द खामोशी भरी उदासी कहने को बहुत कुछ पास में , परन्तु बिखरी है संशय की धुंध भरी नमी सी , कितनी दुविधापूर्ण स्थिति होती है यकीन की ।

है प्यार का बंधन रक्षाबंधन

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राखी का पर्व हमारे देश मे बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है । यह बाजारों की सजावट देखने पर ही समझ आ जाता है , जो एक महीने पहले से ही रंगबिरंगी राखियों से जगमगा उठता है . क्योंकि यह सिर्फ रस्म नही बल्कि मान - सम्मान आपसी प्यार का त्यौहार है , इसमें रिश्तों की गहराई है , पवित्रता है । तभी तो इसे भाई - बहन का पावन पर्व कहा गया है । क्योंकि ये वो रिश्ता है जिन्हें हम बचपन से एक ही आँगन मे जीते है , आपस के सुख - दुख सभी इसके साझेदार होते है , भाई - बहन एक ही शाखा के अलग अलग टहनियां है जो एक दूजे का सहारा बनते हुए बड़े होते है । पर बहने जब ब्याह कर चली जाती है तब यही एक दिन ऐसा होता है जब दोनों को सारे गुजरे दिनों से जोड़ता है । इस निश्छल भावनाओ का कोई मोल नही होता , जिन्हें सिर्फ हम मनाते नही जीत