आपसी द्वेष
रिश्तों के आपसी द्वेष ,
परिवार का
समीकरण ही बदल देते है ,
घर के क्लेश से दीवार
चीख उठती है ,
नफरत इर्ष्या
दीमक की भांति ,
मन को खोखला करती है ,
ज़िन्दगी हर लम्हों के साथ
क़यामत का इन्तजार
करती कटती है ।
और विश्वास चिथड़े से
लिपट सिसकियाँ भरती है ।
टिप्पणियाँ
acchee post.
बधाई
sahi kaha aapne ....insan hona bhagy hai or kavi hona shobhagy .
aap yakinan shobhagyshali hai .
daad hazir hai kubool karen