धीरे - धीरे यह अहसास हो रहा है ,
वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है।
कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़ ,
आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है।
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इन्तहां हो रही है खामोशी की ,
वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं।
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जिंदगी है दोस्त हमारी ,
कभी इससे दुश्मनी ,
कभी है इससे यारी।
रूठने - मनाने के सिलसिले में ,
हो गई कहीं और प्यारी ।
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इस इज़हार में इकरार
नज़रंदाज़ सा है कहीं ,
थामते रह गए ज़रूरत को ,
चाहत का नामोनिशान नहीं।
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ये बहुत पुरानी रचना है किसी के कहने पर फिर से पोस्ट कर रही हूँ ।
टिप्पणियाँ
Behad khoobsoorat rachana!
आपकी कलम को शुभ कामनाएं
सब कुछ बदल गया ,
दिशा बदल गयी
रास्ते बदल गये ,
ख्वाहिशो के रंग उतरकर
नये रंगों में ढल गये ,
सुन्दर कविता है ज्योति जी. बधाई.
सब कुछ बदल गया ,
दिशा बदल गयी
रास्ते बदल गये ,
ख्वाहिशो के रंग उतरकर
नये रंगों में ढल गये ,
बहुत बढ़िया !
सुन्दर लेखन
सूरते भी आईने में बदलती नज़र आई.
रिश्तों के मायने
नई भूमिका सजाई !
वाह,ज्योति जी,
ज़माने के बदलते रंगों को आपने बहुत ही खूबसूरती से परिभाषित किया है !
सब कुछ बदल गया ,
दिशा बदल गयी
रास्ते बदल गये ,
ख्वाहिशो के रंग उतरकर
नये रंगों में ढल गये ,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ...रुख बदल जाने से जीवन में बहुत कुछ बदल जाता है।
सब कुछ बदल गया ,
दिशा बदल गयी
रास्ते बदल गये ,
ख्वाहिशो के रंग उतरकर
नये रंगों में ढल गये ,
सुन्दर लेख । वाकई, रुख हवाओ का बदले तो बदल जाती है ज़िन्दगी ।
सब कुछ बदल गया ,
दिशा बदल गयी
रास्ते बदल गये ,
ख्वाहिशो के रंग उतरकर
नये रंगों में ढल गये ,......
मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।
नई भूमिका सजाई ,
मोटे -मोटे अक्षरों को
हमने रेखांकित किया ,
सच्चाई को वयां करती आपकी यह रचना ....जीवन सन्दर्भों को उद्घाटित करती है ...आपका शुक्रिया